आजकल डॉक्टर का बेटा-डॉक्टर, इंजीनियर का बेटा-इंजीनियर, एक्टर का बेटा-एक्टर, शिक्षक का बेटा-शिक्षक वगैरह, वगैरह यहाँ तक कि चोर का बेटा-चोर बनना पसंद कर सकता है, लेकिन भारत में किसान का बेटा किसान बनना कतई पसंद नहीं करेगा। गदहा भी आत्महत्या करना पसंद नहीं करता है तो भला समझदार मानुष आत्महत्या करना क्यों पसंद करेगा? बिग बी भी किसान है यह साबित हो गया, लेकिन इससे वे क्या साबित करना चाहते हैं, यह मेरी समझ से तो पड़े है। अगर आप समझ सकते हैं तो मुझे भी समझाईये। जिस तरह कई उत्पादों के ब्रांड एम्बेसडर बनकर उत्पादों की बिक्री में इजाफा किये। राज्य के एम्बेसडर बनकर लोंगो को दम एवं जुर्म कम का अनुभव कराये। मेरे विचार से ठीक उसी तरह कर्ज के बोझ से दबे आत्महत्या करने वाले किसानों के लिए बिग बी साहब संजीवनी बुटी का काम करेंगे। असहाय किसानों को अब आशा की एक किरण दिखेगी कि सिर्फ गरीबी एवं लाचारी का नाम किसान नहीं होता। किसान सुविधा सम्पन्न एवं हल नहीं चलाने वाले भी हो सकते हैं। काश्तकारी एवं अभिनय के बीच जो नया रिश्ता कायम हुआ है, इसके दूरगामी परिणाम बहुत अच्छे होंगे। आत्महत्या करने की कोई आवश्यकता नहीं होगा। अगर कर्ज ज्यादा हो जाए तो अभिनय में किस्मत आजमाओं एवं अभिनय न चले तो हल चलाओ। माननीय वित्त मंत्री साहब थोड़ा जल्दबाजी कर बैठे। उन्हें इस फैसले का इंतजार करना चाहिए था। अरबों रूपयें के कर्जे को माफ करने के बदले एकाध करोड़ देकर बिग बी को भूखे किसानों का ब्रांड एम्बेसडर बना देते- और उनसे कहलावते-
भूखे -नंगे किसानों में दम है,
क्योंकि उनके आत्महत्या करने की दर कम है।
इस प्रकार प्रिंट मिडिया एवं इलेकट्रानिक मिडिया के माध्यम से देश के समस्त भूखे -नंगे किसान के बीच ये सुखद संदेश जाता । फलतः वे आत्महत्या करने से परहेज करते एवं सरकार का अरबों का काम करोड़ों में हो जाता।
दरअसल भारत एक चालबाजों का देश है। बुद्धिमान चालबाज लोग नयायपालिका कार्यपालिका, व्यवस्थापिका हर जगह बड़ी आसानी से अपने से कमतर लोग का ढ़गते हैं। न्याय नियम को अपने पक्ष में मोड़ लेते हैं। इसलिए तो चालबाजी को बेईमानी की संज्ञा नहीं दी जा सकती है। बेईमानी का दूसरा रास्ता चालबाजी है, नियम-कानून में कमी या छोटी सी छेद मिले उससे फैसले को अपने पक्ष में कर लो, कानून की दुहाई देकर। ठीक उसी प्रकार जैसे अगर बच्चे के हाथ में हीरा हो तो उससे कहो- यह तो पत्थर का टुकड़ा है, इसे फेंक दो और जैसे ही वह उसे फैंके तुरंत उठाकर चंपत हो जाओ। बच्चे तो बच्चे हैं करेंगे क्या? जमीन अब किसान रखकर क्या करेंगे? जब जमीन रखकर भी वे आत्महत्या ही कर रहे हैं। इसीलिए सरकार भी अब किसानों से जमीने सस्ते दामों में लेकर कहीं बिल्डर को दे रही है तो कहीं विशेष आर्थिक क्षेत्र बनवा रही हैं दोनों तरह से तो देश को फायदा हो रहा है। न किसान के पास जमीन रहेगी न किसान कर्ज लेकर आत्महत्या करेंगे। अगर इन जमीनों पर बिल्डर बड़ी-बड़ी कॉलोनी बनायेंगे या विशेष आर्थिक क्षेत्र बनेगा तो विकास तो देश का ही न होगा। जो किसान जमीन नहीं बेचने को सोच रहे हैं वे कृपया फिर से सोचें एवं तत्काल अपनी जमीन बेच दें। क्योंकि किसान जमीन और आत्महत्या एक-दूसरे का पर्याय बन चुका है। जब कृषि में बिग बी, रिलायंस, बिरला, टाटा बगैरह बगैरह आयेंगे तो आत्महत्या जैसे घृणित कार्य पर रोक लगेगी।
मिस्टर नटवर लाल से किसान बने बिग बी को लाख-लाख बधाईयाँ।
उस जमीन पर एबीसीएल की हल चलायें।
'निशब्द' और 'चीनी कम' जैसी फसले उगायें।
मौका मिले तो भूखे-नंगे किसानों की,
दिल्ली में भी कभी 'सरकार' बनायें।
इससे बंटी का भी तो सपना साकार होगा।
कभी न कभी तो 'ताजमहल' का व्यापार होगा।
No comments:
Post a Comment