मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Tuesday, March 25, 2008

वन्दना

मातेश्वरी तू धन्य है करूँ कैसे बखान।

करूँ नित दिन पूजा तेरी माँ दे दो वरदान।


तुम्हारी कृपा से माँ मैंने,

यह दैव दुर्लभ मानव तन पाया।

तुम्हारी दया से फिर इसको,

बल-बुद्धि विद्या का वतन बनाया।

करूँ कैसे विनती में बालक नादान।

करूँ नित दिन पूजा तेरी माँ दे दो वरदान।


सूरज सा जल-जलकर जग को प्रकाशित करूँ।

चंदा सा ताप सहके शीतलता वितरित करूँ।

फूलों सा काँटों के बीच रहकर जग को सुगंधित करूँ।

मेघों सा बरस-बरस कर खेतों को हरित करूँ।

दे दो वह शक्तियाँ जिससे करूँ जग का कल्याण।

करूँ नित दिन पूजा तेरी माँ दे दो वरदान।


मिल जुल कर जग में रहना सीखूँ।

सहकर खुद औरों का कष्ट हरना सीखूँ।

पर्वतों सा आँधी तूफान में भी अडिग रहकर,

कत्र्तव्य पथ पर निरंतर बढ़ना सीखूँ।

काम, क्रोध, लोभ, मोह से दूर रहूँ, न हो मन में अभिमान।

करूँ नित दिन पूजा तेरी माँ दे दो वरदान।


दया का दीप उर में जलते रहे निरंतर।

निश्चल मन हो प्रेम का गहवर।

शेषित, दलित, उपेक्षित मानवोत्थान हेतु।

सेवा, संघर्ष, समर्पण करता रहूँ जीवन भर।


ताकि उँच, नीच का भेद मिटे, सबका हो मान-सम्मान।

करूँ नित दिन पूजा तेरी माँ दे दो वरदान।

संजय कुमार निषाद

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