खोजो तो जरा।
पथ्थरों में ढृढता।
पुष्पों में कोमलता।
झड़नों में चंचलता।
हिमखंड में शीतलता।
मंद समीर में मादकता।
वाणी में मधुरता।
लवों पर माधुर्यता।
मित्रों में मित्रता।
शत्रुतों में बैरता।
दम्पतियों में सरसता।
युवाओं में चुम्बकता।
मानव में समता।
सज्जनों में क्षमता।
बेईमानों में निर्धनता।
इंसानों में मानवता।
है क्या अब भी बचा?
खोजो तो जरा।
संजय कुमार निषाद
2 comments:
wah bhai wah,
achchhi rachanayen hain.
Pankaj Pushkar
http://samajvigyan.blogspot.com/
wah bhai wah,
achchhi rachanayen hain.
Pankaj Pushkar
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