बूॅद—बूॅद से घड़ा भरता है इस कहावत से कोई अपरिचित नहीं है। यह एक महत्वपूर्ण कहावत है, जिसने इसका अर्थ समझ लिया, उसका भविष्य प्रकाशमय हो गया।
एक प्रसिद्ध चिंतक का मानना है— धनवान रूपया कमाने से नहीं बल्कि रूपया बचाने से होता है। हम अगर प्रतिदिन हजार रूपया कमाये लेकिन एक रूपया भी नहीं बचाये तो हम रूपया कभी इकट्ठा नहीं कर पायेगें। इसके विपरीत अगर हम सौ रूपया कमायो और आधा खर्च कर आधे का बचत करें तो पंद्रह सौ रूपये महीने एवं अठारह हजार रूपये सालाना बचा सकेगें।
निषाद समाज एक कर्मठ समाज है। इसकी दैनिक आमदानी कम नहीं है, लेकिन दैनिक खपत या खर्च एक अफसर से भी ज्यादा करने का कोशिश करते हैं। यानि आमदनी अठन्नी खर्चा रूपया। फलत: दिन रात घर में कलह होते रहता है। खर्च भी नाजायज चीजों में ही होता है। सौ—पचास रूपये का शराब पीने से आदमी बड़ा नहीं हो जाता न ही उससे शारीरिक विकास होता है। मद्यपान, धुम्रपान, पान—गुटखा अनेक प्रकार के रोगों का कारण है, इससे शारीरिक क्षति के साथ—साथ आर्थिक क्षति भी होती है। अगर निषाद समाज सोच समझकर चले एवं बचत करना सीखें तो इससे सबल एवं धनी समाज कोई नहीं रहेगा। निषाद समाज में दान की भावना बहुत कम है, फलत: समाज के हित के गठित स्वयंसेवी संगठन पत्र—पत्रिकाएॅ अर्थाभाव के कारण थोड़े ही दिनों में बंद हो जाती है। करोड़ों के आबादीवाले समाज का एक भी विद्यालय, अस्पताल, धर्मशाला छात्रावास नहीं है। अत: सामाजिक बंधुओं से मेरा अनुरोध है कि थोड़ा—थोड़ा सामाजिक विकास हेतू दान करें और पहल कर स्कूल,कॉलेज,छात्रावास, अस्पताल का निर्माण करें।
संजय कुमार निषाद
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