मंजिल तो पाना है।
शिखर पर जाना है।
चाहे कुछ भी हो जाये,
खुद से किये वादा निभाना है।
संजय कुमार निषाद
Saturday, November 5, 2016
बहुत जोगी मठ उजाड़।
एक बार एक महर्षि के दो शिष्यों के बीच झगड़ा हो गया। एक कहता कि मैं श्रेष्ठ हूॅ। दूसरा कहता था कि मैं श्रेष्ठ हूॅ। विवाद गहराता गया। अंतत: मामला महर्षि जी के पास पहुॅचा। गुरूजी फैसला सुनाये — जो दूसरे को श्रेष्ठ समझे वही श्रेष्ठ है। फिर क्या था आश्रम में फिर से शांति स्थापित हो गई। वे दोनों आपस में बड़े प्यार और स्नेह करने लगे। अत: परिवार समाज या संगठन में जब तक दूसरे के महत्व को न समझा जायेगा, प्रत्येक सदस्य को समुचित आदर नहीं मिलेगा तब तक उक्त जगह न तो शांति होगी न ही अपेक्षित विकास। उच्च महत्वाकांक्षा ही मतभेद का कारण होती है। आंतरिक मतभेद के कारण विशाल सेना को पराजय का मुॅह देखना पड़ता है।
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