मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Saturday, November 5, 2016

बहुत जोगी मठ उजाड़।

एक बार एक महर्षि के दो शिष्यों के बीच झगड़ा हो गया।  एक कहता कि मैं श्रेष्ठ हूॅ। दूसरा कहता था कि मैं श्रेष्ठ हूॅ।  विवाद गहराता गया।  अंतत: मामला महर्षि जी के पास पहुॅचा।  गुरूजी फैसला सुनाये — जो दूसरे को श्रेष्ठ समझे वही श्रेष्ठ है।  फिर क्या था आश्रम में फिर से शांति स्थापित हो गई।  वे दोनों आपस में बड़े प्यार और स्नेह करने लगे।  अत: परिवार समाज या संगठन में जब तक दूसरे के महत्व को न समझा जायेगा, प्रत्येक सदस्य को समुचित आदर नहीं मिलेगा तब तक उक्त जगह न तो शांति होगी न ही अपेक्षित विकास।  उच्च महत्वाकांक्षा ही मतभेद का कारण होती है।  आंतरिक मतभेद के कारण विशाल सेना को पराजय का मुॅह देखना पड़ता है।

निषाद समाज में सच्चे समाज सेवक की कमी है लेकिन तुच्छ मानसिकता वाले समाजसेवकों की संख्या अनगिनत है।  राष्टीयस्तर पर एक भी राजनेता या संगठन नहीं हैं, लेकिन गॉव मुहल्ले स्तर के हजारों संगठन है, जो सामाजिक एकता में सबसे बड़ी बाधक है।  प्रत्येक उपजाति—गौत्र, कुरी का अपना—अपना नेता है जो उपजाति का भेदभाव कर समाज को बॉटकर रखता है।  इसी छुटभैया नेता के कारण आज समाज की दुर्गति हो रही है।

निषाद समाज के प्रत्येक उपजातियों के नेताओं से, समाजिक कार्यकर्ताओं से मेरा विनम्र अनुरोध है कि आपसी भेदभाव भुलाकर एक राष्टीयस्तर का संगठन बनाये एवं उपजाति, गौत्र,कुरी का भेदभाव समाप्त करने हेतु पहल करें।  सामाजिक एकता के लिए हीन मानसिकता को त्यागना होगा, अन्यथा समाज का विकास असंभव है।
संजय कुमार निषाद

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