मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Tuesday, November 1, 2016

जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ।



सोयाहुआ आदमी जागता है, जागा हुआ नहीं।  परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता।  परिश्रम के उपरांत भी अगर सफलता नहीं मिलती तो भी परिश्रम के अबधि में कमी या कार्यपद्धति में दोष मानी जानी चाहिए।  असफलता के भय से कार्यारंभ करने वाले व्यक्तियों की संख्या संघर्ष पथ पर चलकर सफलता का फूल चुनने वाले व्यक्तियों की तुलना में कई गुणा अधिक है।  वास्तव में मानव तीन श्रेणियों में बॉटे जा सकते हैंप्रथम श्रेणी के मानव असफलता के भय से कार्यारंभ ही नहीं करते, द्वितीय श्रेणी के मानव कार्यारंभ तो करते हैं पर बीच में बाधाएं आने पर कार्य करना छोड़ देते हैं और तृतीय श्रेणी के मानव प्रत्येक मुश्किलों का सामना करते हुए सफलता प्राप्तकर यानि कार्य समाप्त कर ही दम लेते हैं।  इसीलिए तृतीय श्रेणी के मानव को उच्च कोटि के मानव कहा जाता है।

पिछड़े, कमजोर, अल्पविकसित समाज में प्रथम श्रेणी के ही मानव अत्यधिक है, परिणामत: समाज का आज बुरा हाल है। अगर हमारा सपना ही पेड़ पर चढ़ने का होगा तो हम चॉद पर कैसे पहुॅचेंगे।   ऐसे समाज के लोगों का विचार, सोच, आकांक्षा ही निम्न श्रेणी होते हैं। जिस कारण कोई बृहत कार्य में हाथ ही नहीं बॅटाते।  असफलता का भय ही मनुष्य को कायर बना देता है।

अगरगोताखोर समुद्र के किनारे हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहेगा तो उसके हाथ कुछ नही आयेगा।  वही अगर समुद्र में गोता लगायेगा तो उसके हाथ मोतियों से भरा होगा।  समाज के विकास के लिए साहस एवं ढृढ विश्वास के साथ प्रत्येक व्यक्ति को परिश्रम करना होगा, क्योंकि बिना लड़े कोई पहलवान नहीं हो सकता, बिना संघर्ष किये कोई महान नहीं हो सकता।  कहा भी गया है

 

जिनखोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ।

मैंबपुरी ढूॅढन गई रहो किनारे बैठ।।

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