मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Sunday, November 6, 2016

दुख मे सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।

चुनाव के समय अक्सर एक बता उठती है कि राजनैतिक दल निषादों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं देती।  सिर्फ चुनाव में निषाद राजनेता, राजनैतिक पार्टी के कार्यालय में भीड़ लगाते हैं।  उनका न तो किसी पार्टी में वर्चस्व रहता है न अपने क्षेत्र में न ही अपने समाज का उचित समर्थन।  फिर राजनैतिक दल को कोसना कहॉ तक उचित है? जिस निषाद राजनेता को पार्टी अपना उम्मीदवार बनाती है उन्हें सिर्फ चुनाव तक ही अपनी जाति की याद रहती है, चिंता होती है, चुनाव जीतने के पश्चात या जब वे जातीय कोटे से मंत्री बन जाते हैं, तब उनको अपने समाज से कोई मतलब नहीं रहता ।  कुछ मामले में तो वे अपने समाज को लूटने का ही काम करते हैं, फलस्वरूप समाज में उनकी छवि बिगड़ती ही चली जाती है। पार्टी भी उन्हें नीचले दर्जे का नेता मानती है, क्योंकि उनके पास जन समर्थन का अभाव रहता है।  असलिए वे अगले चुनाव में टिकट गॅवा बैठते हैं या दूसरे के आशीर्वाद से टिकट पाते हैं। 

अगर राजनेता निषाद समाज का निषाद समाज के लिए निषाद समाज द्वारा समर्थित एवं समर्पित हो तो राजनैतिक पार्टी खुद उन्हें आमंत्रित करेगी।  अत: निषाद राजनेताओं को चाहिए कि चुनाव में ही नहीं , वे चुनाव के पहले या चुनाव के बाद अपनी जाति के हित के लिए कार्य करें, जाति को संगठित करें।  उनके समस्याओं का निदान करने का कोशिश करें।  समाज को लूटने, ठगने के बजाय सरकारी लाभ पहुॅचाने का प्रयास करें।  अगर निषाद जाति संगठित हो जायें तो जाति के नेताओं का जो जाति के लिए सर्वमान्य है एवं समर्पित है, उनको श्वत: पार्टी सम्मानित किया जायेगा।

निषाद जाति के समाजिक कार्यकत्ताओं को भी चाहिए कि ऐसे नेताओं का जो सिर्फ चुनाव के समय ही अपनी जाति की याद आती है, उनका समर्थन नहीं करें जो दुख में समाज की सहायता करते हैं उनकी ही मदद करें।  अगर निषाद राजनेता निषाद समाज के विकास के लिए कार्य करेंगे तो निश्चय ही वे सफल होगें, और समाज एवं देश में उनका सम्मान बढ़ेंगे।

Saturday, November 5, 2016

बहुत जोगी मठ उजाड़।

एक बार एक महर्षि के दो शिष्यों के बीच झगड़ा हो गया।  एक कहता कि मैं श्रेष्ठ हूॅ। दूसरा कहता था कि मैं श्रेष्ठ हूॅ।  विवाद गहराता गया।  अंतत: मामला महर्षि जी के पास पहुॅचा।  गुरूजी फैसला सुनाये — जो दूसरे को श्रेष्ठ समझे वही श्रेष्ठ है।  फिर क्या था आश्रम में फिर से शांति स्थापित हो गई।  वे दोनों आपस में बड़े प्यार और स्नेह करने लगे।  अत: परिवार समाज या संगठन में जब तक दूसरे के महत्व को न समझा जायेगा, प्रत्येक सदस्य को समुचित आदर नहीं मिलेगा तब तक उक्त जगह न तो शांति होगी न ही अपेक्षित विकास।  उच्च महत्वाकांक्षा ही मतभेद का कारण होती है।  आंतरिक मतभेद के कारण विशाल सेना को पराजय का मुॅह देखना पड़ता है।

निषाद समाज में सच्चे समाज सेवक की कमी है लेकिन तुच्छ मानसिकता वाले समाजसेवकों की संख्या अनगिनत है।  राष्टीयस्तर पर एक भी राजनेता या संगठन नहीं हैं, लेकिन गॉव मुहल्ले स्तर के हजारों संगठन है, जो सामाजिक एकता में सबसे बड़ी बाधक है।  प्रत्येक उपजाति—गौत्र, कुरी का अपना—अपना नेता है जो उपजाति का भेदभाव कर समाज को बॉटकर रखता है।  इसी छुटभैया नेता के कारण आज समाज की दुर्गति हो रही है।

निषाद समाज के प्रत्येक उपजातियों के नेताओं से, समाजिक कार्यकर्ताओं से मेरा विनम्र अनुरोध है कि आपसी भेदभाव भुलाकर एक राष्टीयस्तर का संगठन बनाये एवं उपजाति, गौत्र,कुरी का भेदभाव समाप्त करने हेतु पहल करें।  सामाजिक एकता के लिए हीन मानसिकता को त्यागना होगा, अन्यथा समाज का विकास असंभव है।
संजय कुमार निषाद

नाचने उठे तो घूॅघट कैसा?

बच्चे अभिभावकों की नजरों से छिपकर, धुम्रपान,मद्यपान करता है या जुआ खेलता है या अन्य किसी प्रकार के अनैतिक कार्य करता है।  समाज में यह परंपरा बन चुकी है कि जो अनैतिक कार्य है या समाज को अमान्य है उसे समाज के नजरों से बचाकर करना चाहिए।  कुछ स्वयंसेवी, समाजसेवक अपने जीवन का लक्ष्य जनसेवा बनाता है, लेकिन उसे समाज के, परिवार के सदस्यों के आलोचना का भी भय रहता है, कभी कभी तो वे आलोचना के डर से अपना कार्य स्थगित कर देता है या औरों के नजर बचाकर करता है।  यह कैसी बिडंबना है।  अगर हम किसी कार्य को अपना लक्ष्य बना लिया तो यह जरूरी नहीं कि लोग हमारा गुणगान करें हमारे कार्य का एवं हमारा स्वागत करें।  हम अगर मान—सम्मान के लिए किसी का सेवा करते हैं तो यह हमारा हीन मानसिकता की पहचान होगी।  प्रतिष्ठा मजदूरी में नहीं मिलती।  अपने सेवा का मजदूरी के रूप में प्रतिष्ठा मांगना कहॉ तक न्यायोचित है।  अगर हम आत्मसंतुष्टि के लिए समाजसेवा करते हैं तो हमें अपने कार्य पर प्रसन्न रहना होगा न कि दूसरों प्रतिक्रिया पर । जिस दिन हम प्रतिफल की इच्छा किये बगैर कोई कर्म करना शुरू करेगें।  उस दिन से हमारे कार्य का अपेक्षित प्रभाव समाज पर पड़ेगा और निश्चय ही इससे समाज का कल्याण होगा और हमें उचित सम्मान भी मिलेगा।  कहा भी गया है— नाचने उठे तो घूॅघट कैसा?

अत: निषाद समाज सेवियों से मेरा अनुरोध है कि आलोचना एवं विपरीत परिस्थितियों की चिंता किये बिना अपना कर्तव्य करें उनसे घबरायें नहीं। जब  सफलता हमें मिलेगी तब हमारा विरोधी भी हमारे साथ चलेगें, हमारे कार्य में हाथ बटॉयेगें सच्चे सोना की परख आग में तपाकर किया जाता है।  उसी प्रकार सच्चे साधक की पहचान विपरीत परिस्थितियों में होती है।

संजय कुमार निषाद

बूॅद—बूॅद से घड़ा भरता है।

बूॅद—बूॅद से घड़ा भरता है इस कहावत से कोई अपरिचित नहीं है।  यह एक महत्वपूर्ण कहावत है, जिसने इसका अर्थ समझ लिया, उसका भविष्य प्रकाशमय हो गया।

एक प्रसिद्ध चिंतक का मानना है— धनवान रूपया कमाने से नहीं बल्कि रूपया बचाने से होता है।  हम अगर प्रतिदिन हजार रूपया कमाये लेकिन एक रूपया भी नहीं बचाये तो हम रूपया कभी इकट्ठा नहीं कर पायेगें।  इसके विपरीत अगर हम सौ रूपया कमायो और आधा खर्च कर आधे का बचत करें तो पंद्रह सौ रूपये महीने एवं अठारह हजार रूपये सालाना बचा सकेगें।

निषाद समाज एक कर्मठ समाज है।  इसकी दैनिक आमदानी कम नहीं है, लेकिन दैनिक खपत या खर्च एक अफसर से भी ज्यादा करने का कोशिश करते हैं।  यानि आमदनी अठन्नी खर्चा रूपया।  फलत: दिन रात घर में कलह होते रहता है।  खर्च भी नाजायज चीजों में ही होता है।  सौ—पचास रूपये का शराब पीने से आदमी बड़ा नहीं हो जाता न ही उससे शारीरिक विकास होता है।  मद्यपान, धुम्रपान, पान—गुटखा अनेक प्रकार के रोगों का कारण है,  इससे शारीरिक क्षति के सा​थ—साथ आर्थिक क्षति भी होती है।  अगर निषाद समाज सोच समझकर चले एवं बचत करना सीखें तो इससे सबल एवं धनी समाज कोई नहीं रहेगा।  निषाद समाज में दान की भावना बहुत कम है, फलत: समाज के हित के गठित स्वयंसेवी संगठन पत्र—पत्रिकाएॅ अर्थाभाव के कारण थोड़े ही दिनों में बंद हो जाती है।  करोड़ों के आबादीवाले समाज का एक भी विद्यालय, अस्पताल, धर्मशाला छात्रावास नहीं है।  अत: सामाजिक बंधुओं से मेरा अनुरोध है कि ​थोड़ा—थोड़ा सामाजिक विकास हेतू दान करें और पहल कर स्कूल,कॉलेज,छात्रावास, अस्पताल का निर्माण करें।
संजय कुमार निषाद

Wednesday, November 2, 2016

Central List of Other Backward Castes (OBCs): Telangana



State : Telangana
Entry No.
Caste / Community
1
Agnikulakshatriya, Palli, Vadabalija, Bestha, Jalari, Gangavar, Gangaputra, Goondla, Vanyakulakshatriya (Vannekapu,Vannereddi, Pallikapu, Pallireddi) Neyyala, Pattapu
2
Balasanthu, Bahurupi
3
Budabukkala
4
Rajaka (Chakali, Vannar)
5
Dasari (formerly engaged in Bikshatana i.e., Beggary)
6
Dommara
7
Gangiredlavaru
8
Jangam (whose traditional occupation is begging)
9
Jogi
10
Katipapala
11
Medari or Mahendra
12
Mondivaru, Mondibanda, Banda
13
Nayi-Brahmin/Nayee-Brahmin (Mangali), Mangala and Bhajantri
14
Vamsha Raj, Pitchiguntla
15
Pamula
16
Pardhi (Nirshikari)
17
Deleted
18
Dammali/Dammala/ Dammula/Damala, Peddammavandlu, Devaravandlu, Yellammavandlu, Mutyalammavandlu
19
Veeramushti (Nettikotala), Veerabhadreeya
20
Valmiki Boya (Boya, Bedar, Kirataka, Nishadi, Yellapi, Pedda Boya), Talayari, Chunduvallu
21
Gudala
22
Kanjara – Bhatta
23
Kepmare or Reddika
24
Mondepatta
25
Nokkar
26
Pariki Muggula
27
Yata
28
Chopemari
29
Kaikadi
30
Joshinandiwala
31
Odde (Oddilu, Vaddi, Vaddelu), Vaddera, Waddera
32
Mandula
33
Kunapuli
34
Aryakshatriya, Chittari, Giniyar, Chitrakara, Nakhas
35
Devanga
36
Goud, Ediga, Gouda (Gamalla), Kalalee, Goundla and Srisayana (Segidi)
37
Gandla, Telikula, Devathilakula
38
Jandra
39
Kummara or Kulala, Salivahana
40
Karikalabhakthulu, Kaikolan or Kaikala (Sengundam or Sengunther)
41
Karnabhakthulu
42
Kuruba or Kuruma
43
Neelakanthi
44
Patkar (Khatri)
45
Perika (Perika Balija, Puragiri kshatriya)
46
Nessi or Kurni
47
Padmasali (Sali, Salivan, Pattusali, Senapathulu, Thogata Sali)
48
Swakulasali
49
Thogata, Thogati or Thogataveerakshatriya
50
Viswabrahmin or Viswakarma (Ausula, Kamsali, Kammari, Kanchari, Vadla or Vadra or Vadrangi and Silpi)
51
Scheduled Castes converts to Christianity and their progeny
52
Arekatika, Katika
53
Bhatraju
54
Chippolu (Mera)
55
Hatkar
56
Jingar
57
Koshti
58
Kachi
59
Surya Balija (Kalavanthula, Ganika)
60
Krishnabalija (Dasari, Bukka)
61
Mathura
62
Mali (where they are not Scheduled Tribe)
63
Mudiraj, Mutrasi, Tenugollu
64
Munnurukapu
65
Neeli
66
Poosala
67
Passi
68
Rangarez or Bhavasara Kshatriya
69
Sadhuchetty
70
Satani (Chattadasrivaishnava)
71
Tammali (Non-Brahmins) (Shudra caste) whose traditional occupation is playing musical instruments, vending of flowers and giving assistance in temple service but not Shivarchakars
72
Uppara or Sagara
73
Vanjara (Vanjari)
74
Yadava (Golla)
75
Pala-Ekari (area confined to Hyderabad and Rangareddy Districts only)
76
Ayyaraka (area confined to Khammam and Warrangal Districts only)
77
Nagaralu
78
Kasikapadi/Kasikapudi (area confined to Hyderabad, Rangareddy, Nizamabad, Mahaboobnagar and Adilabad Districts only)
79
Lodh/Lodhi/Lodha (area confined to Hyderabad, Rangareddy, Khammam and Adilabad Districts only)
80
Kurmi
81
Patra
82
Siddula
83
Sikligar/Saikalgar
84
Budubunjala/Bhunjwa/ Bhadbhunja (area confined to Hyderabad and Rangareddy Districts only)
85
Lakkamarikapu
-
Muslim castes/communities:
86(i)
Mehtar (Muslim)
86(ii)
Dudekula, Laddaf, Pinjari or Noorbash
86(iii)
Qureshi (Muslim Butchers)
86(iv)
Faqir, Fakeer
87
Rajannala, Rajannalu