आज के विकासशील एवं अविकसित देश एक अजीब महामारी से जूझ रहा है। वह महामारी है जनसंख्या बृद्धि। अंतराष्ट्रीय संस्थाओं, स्वयंसेवी संगठनों, विकसित देशें की सरकारों एवं स्वदेशी सरकार एवं संगठनों के कल्याणकारी कार्यक्रम इन दशें में बेअसरी साबित होती है। बड़े से बड़े बजट की योजनाएॅं भी रेगिसतान की वारिश की तरह उड़ जाती है। इसका कारण वहॉं की अनियंत्रित जनसंख्या ही है।
भारत एक विकाससशील देश है। सतही तौर पर यह दिनों दिन प्रगति कर रही है, आम आदमी के रहन—सहन में फर्क हो न हो कुछ लोगों के रहन—सहन में परिवर्तन जरूर नजर आ रहा है। अमीरी बढ़ रही है । गरीबों की सरकार बनती है, गरीबी कायम है। गरीबी मिटाने वाली सरकार भला अमीरों को क्यों मिटायेगी लोग भूखे मर रहे हैं। भला हो उस वैज्ञानिकों को जिन्होंने आलीशान बंगलों को सड़नरहित बनाते है, वर्णा महलें सड़ते एवं बगल के सड़कों पर बेघार लोग मरते। प्रकृति को अगर खुद का नयायालय नहीं होता तो इस सरकारी न्यायालय द्वारा आदेश जारी होता—'भूकंप, आॅंधी—तूफान, बाढ़,चक्रवात, माहमारी इत्यादि आपदाएॅं केवल गरीबों के लिए एवं गरीब क्षेत्र में ही हा। अमीरों को इससे मुक्त रखा जाय। आखिर सब कुछ जिसे असंभव कहा जाता है संभव गरीब देश में होता है। किसान अपने फसल से लगे खेतों में खुद आग लगाता है ताकि खेत साफ हो और अगला फसल उसमें बोया जा सके। आखिर क्या करेंगे ईख उगाकर चीनी मिल बंद है खपत के लायक चीनी आयात कर ली जाती है। कीड़े के प्रकोप से फसले चौपट हो जाती है, किसान कर्ज से मुक्ति पाने हेतु कीटनाशक दवाईयों का प्रयोग खुद को नाश करने में लगा देते हैं, लेकिन करोड़ों—अरबों के हेराफेरी, घोटाला करने वाले लोग शान से अपने को जनता का सेवक एवं निर्दोष कहते नहीं अघाते। उनके पूर्खे भी कभी नहीं आत्महत्या की थी। हमारे धर्मशास्त्रों में आत्महत्या को पान नहीं महापाप कहा गया है। इसलिए आत्महत्या करनेवाले वे कर्जदार किसान महापापी है, उन्हें कर्ज चूकाने का दूसरा उपाया ढ़ूढना चाहिए।
भारत मे सब कुछ बिकाउ है— इज्जत, ईमान, इंसानियत। गरीब अगर बहू—बेटियों की ईज्जत नीलाम करे तो वे मालामाल हो जायेंगे। पर यहॉं भी भेद होता है गरीबों की ईज्जत बिकती नहीं गिरबी रखी जाती है। आखिर क्या करे गरीब और क्या करे गरीब देश? गरीबी तो उन्हें पूर्वजों से सौगात के रूप में मिली है। गरीबी मिटाना यानि दों शम की रोटी जुटाना घर बनाना, पहनने की कपड़े का इंतजाम करना गरीबों का काम नहीं है। वह सरकार का काम है। उनका काम तो सिर्फ बच्चा पैदा करना है। क्योंकि वह गरीब है इसलिए वह सारी जिम्मेदारी से मुक्त है। वे बच्चा पैदा करेंगे, बाकी काम सरकार करे या न करें उनकी इच्छा। उनके रहने के घर, पहनने के लिए कपड़ा, साने के लिए रोटी, पढ़ने के लिए विद्यालय सब के सब सरकार के उपर है। अगर सरकार पूरा नहीं करती तो अमीर लोग पूरा करें। जिनके पास करोड़ों रूपये है उन्हें एक बच्चे हैं जो विदेश में पढ़ते हैं। जिनके पास एक कोड़ी भी नहीं है, उन्हें एक दर्जन बच्चे हैं। जो करोड़पति के कारखने में काम करते हैं, फिर भी करोड़पति को लोग गाली देते हैं। अमीरों के बच्चे तो विदेश में पढ़ते हैं गरीबों के बच्चे को गॅंवई स्कूल भी नसीब नहीं होता। आखिर दोष किसका है? क्या अमीर बनना,समझदार बनना पाप है?
गरीब अगर एक बच्चे पैदा करेंगे तो उसके लिए सब चीजों का इंजाम सरलता से किया जा सकता है। चाहे तो इंतजाम खुद उसके माता—पिता करे या सरकार। तब गरीबी अपने आप मिट जाएगी। अगर एक दम्पति को एक बच्चा रहेगा तो उनके खाने—पीने रहने पहनने, पढ़ने का इंतजाम वे मजदूरी करके आसनी से कर सकता है। पढ़—लिखकर अगर वह बच्चा योग्य बन जायेगा तो इसका भविष्य उज्ज्वल हो जायेगा। सरकार के अनेक कल्याणकारी योजनाओं का वह लाभ ले सकेगा। आरक्षण का लाभ पाकर सरकारी सेवा में जा सकेगा या योग्यता के बल निजि कंपनियों में नौकररी कर सकेगा या खुद का लघु उद्योग या कम पूॅंजीवाला धंधा, व्यापार आसानी एवं समझदारी से कर सकेगा।
गरीबों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह गरीबी से निपटना नहीं चाहता है। एक गरीब जब एक दर्जन बच्चे पैदा करता है। तब वह यह नहीं सोचता है कि उनके लाल—पाल7न भी उसे ही करना पड़ेगा। बच्चे को बचपन में ही पेट भरने के लिए तरह—तरह के कष्टप्रद काम करना पड़ता है। अल्पव्यस्क आयु में ही उसकी शादी हो जाती है, और उसे भी होश संभालते—संभलते सात—आठ बच्चे पैदा हो जाता है। यह सिलसिला पीढ़ी गरीबों में उपस्थ्ति रहता है। अगर गरीब इस रोग का इलाज कर ले तो वह दो—चार साल में ही आत्म निर्भर हो जायेगा।
सभी कमजोर समाज में जनसंख्या बृद्धि एक आनवंशिक रोग के तरह है। समाज के विकास के लिए इस रोग से छुटकारा पाना अत्यन्त आवश्यक है। देश के प्रत्येक कोने के कमजोर समाजों की स्थिति लगभग एक जैसी ही है। दिेनों—दिन उनकी स्थिति बिगड़ती जा रही है। जिस रफ्तार से कमजोर समाजों की जनसंख्या बढ़ रही है उसी रफ्तार से उनकी पतन भी हो रहा है।
अनियंत्रित जनसंख्या के कारण ही मानव को नीच से नीच कुकर्म करना पड़ताह ै। इतिहास गवाह जिस समाज की जनसंख्या कीड़े—मकोड़े के तरह बढ़ती गयाी उकसा पतन बहुत कम समय में हो गया। राजा—महाराजा प्राया: उसी जाति का बनते आ रहा है या अब शासनाध्यक्ष जो कम जनसंख्या में यानि जिसकी जनसंखया नियंत्रित है।
प्रकृति पर अगर नजर डाले तो निम्न श्रेणी के कीड़—मकोड़े या जातियों की ही जनसंख्या अनियंत्रित रहती है। अत्यधिक बच्चा पैदा करने से शारीरिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक तीनों प्रकार का पतन हो जाता है।
भारत में आज कई ऐसे समाज है जिनकी आबादी करोड़ों में है, लेकिन एक भी आई0ए0एस0, आई0 पी0 एस0 अधिकारी उस समाज से नहीं है। एक प्रकार ऐसे समाज का बौद्धिक पतन हो गया है। जो अनियंत्रित जनसंख्या के कारण ही हुआ है।
अत: कमजोर, अल्पविकसित समाज के शुभचिंतकों, सामाजिक कार्यकत्ताओं, सामाजिक संगठनों और राजनेताओं से मेरा विनम्र निवेदन है कि वे जनसंख्या को नियंत्रित करने हेतु कदम बढ़ायें। पत्र—पत्रिकाओं में नियमित रूप से इस पर विचार दें। सिर्फ जयंतियॉं मनाने से सभा सम्मेलन कर सामाजिक एकता का आह्वान करने से समाज का हित कभी नहीं होगा। जब तक जनसंख्या नियंत्रित नहीं होगी तबतक समाज अशिक्षित रहेगा। शिक्षा के बिना समाज का विकास असंभव है।
संजय कुमार निषाद
भारत एक विकाससशील देश है। सतही तौर पर यह दिनों दिन प्रगति कर रही है, आम आदमी के रहन—सहन में फर्क हो न हो कुछ लोगों के रहन—सहन में परिवर्तन जरूर नजर आ रहा है। अमीरी बढ़ रही है । गरीबों की सरकार बनती है, गरीबी कायम है। गरीबी मिटाने वाली सरकार भला अमीरों को क्यों मिटायेगी लोग भूखे मर रहे हैं। भला हो उस वैज्ञानिकों को जिन्होंने आलीशान बंगलों को सड़नरहित बनाते है, वर्णा महलें सड़ते एवं बगल के सड़कों पर बेघार लोग मरते। प्रकृति को अगर खुद का नयायालय नहीं होता तो इस सरकारी न्यायालय द्वारा आदेश जारी होता—'भूकंप, आॅंधी—तूफान, बाढ़,चक्रवात, माहमारी इत्यादि आपदाएॅं केवल गरीबों के लिए एवं गरीब क्षेत्र में ही हा। अमीरों को इससे मुक्त रखा जाय। आखिर सब कुछ जिसे असंभव कहा जाता है संभव गरीब देश में होता है। किसान अपने फसल से लगे खेतों में खुद आग लगाता है ताकि खेत साफ हो और अगला फसल उसमें बोया जा सके। आखिर क्या करेंगे ईख उगाकर चीनी मिल बंद है खपत के लायक चीनी आयात कर ली जाती है। कीड़े के प्रकोप से फसले चौपट हो जाती है, किसान कर्ज से मुक्ति पाने हेतु कीटनाशक दवाईयों का प्रयोग खुद को नाश करने में लगा देते हैं, लेकिन करोड़ों—अरबों के हेराफेरी, घोटाला करने वाले लोग शान से अपने को जनता का सेवक एवं निर्दोष कहते नहीं अघाते। उनके पूर्खे भी कभी नहीं आत्महत्या की थी। हमारे धर्मशास्त्रों में आत्महत्या को पान नहीं महापाप कहा गया है। इसलिए आत्महत्या करनेवाले वे कर्जदार किसान महापापी है, उन्हें कर्ज चूकाने का दूसरा उपाया ढ़ूढना चाहिए।
भारत मे सब कुछ बिकाउ है— इज्जत, ईमान, इंसानियत। गरीब अगर बहू—बेटियों की ईज्जत नीलाम करे तो वे मालामाल हो जायेंगे। पर यहॉं भी भेद होता है गरीबों की ईज्जत बिकती नहीं गिरबी रखी जाती है। आखिर क्या करे गरीब और क्या करे गरीब देश? गरीबी तो उन्हें पूर्वजों से सौगात के रूप में मिली है। गरीबी मिटाना यानि दों शम की रोटी जुटाना घर बनाना, पहनने की कपड़े का इंतजाम करना गरीबों का काम नहीं है। वह सरकार का काम है। उनका काम तो सिर्फ बच्चा पैदा करना है। क्योंकि वह गरीब है इसलिए वह सारी जिम्मेदारी से मुक्त है। वे बच्चा पैदा करेंगे, बाकी काम सरकार करे या न करें उनकी इच्छा। उनके रहने के घर, पहनने के लिए कपड़ा, साने के लिए रोटी, पढ़ने के लिए विद्यालय सब के सब सरकार के उपर है। अगर सरकार पूरा नहीं करती तो अमीर लोग पूरा करें। जिनके पास करोड़ों रूपये है उन्हें एक बच्चे हैं जो विदेश में पढ़ते हैं। जिनके पास एक कोड़ी भी नहीं है, उन्हें एक दर्जन बच्चे हैं। जो करोड़पति के कारखने में काम करते हैं, फिर भी करोड़पति को लोग गाली देते हैं। अमीरों के बच्चे तो विदेश में पढ़ते हैं गरीबों के बच्चे को गॅंवई स्कूल भी नसीब नहीं होता। आखिर दोष किसका है? क्या अमीर बनना,समझदार बनना पाप है?
गरीब अगर एक बच्चे पैदा करेंगे तो उसके लिए सब चीजों का इंजाम सरलता से किया जा सकता है। चाहे तो इंतजाम खुद उसके माता—पिता करे या सरकार। तब गरीबी अपने आप मिट जाएगी। अगर एक दम्पति को एक बच्चा रहेगा तो उनके खाने—पीने रहने पहनने, पढ़ने का इंतजाम वे मजदूरी करके आसनी से कर सकता है। पढ़—लिखकर अगर वह बच्चा योग्य बन जायेगा तो इसका भविष्य उज्ज्वल हो जायेगा। सरकार के अनेक कल्याणकारी योजनाओं का वह लाभ ले सकेगा। आरक्षण का लाभ पाकर सरकारी सेवा में जा सकेगा या योग्यता के बल निजि कंपनियों में नौकररी कर सकेगा या खुद का लघु उद्योग या कम पूॅंजीवाला धंधा, व्यापार आसानी एवं समझदारी से कर सकेगा।
गरीबों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह गरीबी से निपटना नहीं चाहता है। एक गरीब जब एक दर्जन बच्चे पैदा करता है। तब वह यह नहीं सोचता है कि उनके लाल—पाल7न भी उसे ही करना पड़ेगा। बच्चे को बचपन में ही पेट भरने के लिए तरह—तरह के कष्टप्रद काम करना पड़ता है। अल्पव्यस्क आयु में ही उसकी शादी हो जाती है, और उसे भी होश संभालते—संभलते सात—आठ बच्चे पैदा हो जाता है। यह सिलसिला पीढ़ी गरीबों में उपस्थ्ति रहता है। अगर गरीब इस रोग का इलाज कर ले तो वह दो—चार साल में ही आत्म निर्भर हो जायेगा।
सभी कमजोर समाज में जनसंख्या बृद्धि एक आनवंशिक रोग के तरह है। समाज के विकास के लिए इस रोग से छुटकारा पाना अत्यन्त आवश्यक है। देश के प्रत्येक कोने के कमजोर समाजों की स्थिति लगभग एक जैसी ही है। दिेनों—दिन उनकी स्थिति बिगड़ती जा रही है। जिस रफ्तार से कमजोर समाजों की जनसंख्या बढ़ रही है उसी रफ्तार से उनकी पतन भी हो रहा है।
अनियंत्रित जनसंख्या के कारण ही मानव को नीच से नीच कुकर्म करना पड़ताह ै। इतिहास गवाह जिस समाज की जनसंख्या कीड़े—मकोड़े के तरह बढ़ती गयाी उकसा पतन बहुत कम समय में हो गया। राजा—महाराजा प्राया: उसी जाति का बनते आ रहा है या अब शासनाध्यक्ष जो कम जनसंख्या में यानि जिसकी जनसंखया नियंत्रित है।
प्रकृति पर अगर नजर डाले तो निम्न श्रेणी के कीड़—मकोड़े या जातियों की ही जनसंख्या अनियंत्रित रहती है। अत्यधिक बच्चा पैदा करने से शारीरिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक तीनों प्रकार का पतन हो जाता है।
भारत में आज कई ऐसे समाज है जिनकी आबादी करोड़ों में है, लेकिन एक भी आई0ए0एस0, आई0 पी0 एस0 अधिकारी उस समाज से नहीं है। एक प्रकार ऐसे समाज का बौद्धिक पतन हो गया है। जो अनियंत्रित जनसंख्या के कारण ही हुआ है।
अत: कमजोर, अल्पविकसित समाज के शुभचिंतकों, सामाजिक कार्यकत्ताओं, सामाजिक संगठनों और राजनेताओं से मेरा विनम्र निवेदन है कि वे जनसंख्या को नियंत्रित करने हेतु कदम बढ़ायें। पत्र—पत्रिकाओं में नियमित रूप से इस पर विचार दें। सिर्फ जयंतियॉं मनाने से सभा सम्मेलन कर सामाजिक एकता का आह्वान करने से समाज का हित कभी नहीं होगा। जब तक जनसंख्या नियंत्रित नहीं होगी तबतक समाज अशिक्षित रहेगा। शिक्षा के बिना समाज का विकास असंभव है।
संजय कुमार निषाद
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