नया साल का आगमन हा रहा है। पुराना साल को हमलोग बिदा करने वाले हैं। सच्चाई यह है कि नया साल सबके लिए नया नहीं होता है और पुराना साल भी सबके लिए पुराना नहीं हो गया। इसे अगर जरा विस्तार से सोचने और समझने का प्रयत्न करें तो मामला और गंभीर हो जाएगा। जरा और गहराई में उतरें तो पायेंगे कि यहॉं का नजारा तो और विचित्र है। हम नया साल और पुराना साल की बात क्यों इस शताब्दी यानि ईक्कीसवीं शताब्दी और बीसवीं शताब्दी की बात करें। सत्य तो यह है कि अभी इक्कीसवीं शताब्दी भी चल रहा है और साथ में बीसवीं,उन्नीसवीं, अठारहवीं, सतरहवी, सौलहवीं ईत्यादि शताब्दियॉं भी गतिमान है। कुछ लोग असहमत जरूर होंगे,वे खुद को सौलहवीं शताब्दी के नहीं मानेंगे लेकिन उनका न मानना ही एक प्रमाण है उनके बीसवीं या सौलहवीं शताब्दी के होने का। असल में वर्तमान में जीवित मनुष्य मानसिक और बौद्धिक रूप में वर्तमान में जी नहीं रहे होते हैं। उनका मानसिक एवं बौद्धिक स्तर हो सकता है दो—चार साल पीछे हो या दो—चार हजार साल पीछे भी हो सकता है।
आज के समय में करोड़ों लोग निरक्षर हैं। क्या वे वास्तव में ईक्कीसवीं शताब्दी में हैं? साक्षरता कई शताब्दी पूर्व से ही चलन में है। बीसवीं या उन्नीसवी सदी में आविष्कृत वस्तुएॅं अभी भी सबके पहुॅंच से दूर हैं। ये वस्तुएॅं जिनके पहुॅंच से दूर है क्या वे वास्तव में ईक्कीसवीं सदी में हैं? आज मंगलयान—चंद्रयान मी बात होनी चाहिए, तो हम पुष्पक विमान, रामायण, महाभारत में अपनी श्रेष्ठता खोजने या साबित करने के प्रयास में हैं। दुनिया रोबोट से काम करनवाने के प्रयास में हैं तो हम समुद्र में सेतु की रहस्य समझाने में लगे हैं। असल में हम लोगों को पुरानी बातें बता कर, सिखाकर एवं समझाकर उन्हें होशियार नहीं बना रहें हैं या बना सकते हैं, बल्कि हम उन्हें मजबूर कर रहें हैं पिछली शताब्दियों में जीने के लिए। वर्तमान में जीने का प्रयास करना ही वास्तव में जीवन हैं।
साल नया उनके लिए होता है जो नये साल की उपलब्धियों को अपने आप में समाहित कर सके। समाज को अपने ओर से कुछ नया दे सके और समाज से नया लेने में भीव वे सक्षम हो। मानव आबादी का एक बड़ा हिस्सा तो ऐसे लोगों का है, जो कुछ नया समाज को दने लायक नहीं है। देना तो दूर की बात है वे समाज से नया लेने में सक्षम भी नहीं हैं। सच मानिये एसे करोड़ों—अरबों लोगों के नया साल कभी नया नहीं होता है। ये कई पीढ़ियों से एक ही साल एक ही सदी में जी रहें हैं। समय का पहिया घूमता है इनके लिए सच नहीं है। इनके लिए समय भी स्थिर है, और मजे की बात —समय को इन्होंने स्वयं रोक रखा है। एक ही साल और सदी में पीढ़ी दर पीढ़ी जीने में इन्हें मजा भी आ रहा है। पुराने सदी के लोगें का शिकायत एक बढ़िया औजार था। आज भी हम इस औजार को और धारदार बनाने में जुटे हैं। सोशल मीडिया पर एक अच्छा हास्य प्राप्त हुआ— कभी कोई गलती हो जाये तो घबराने की जरूरत नहीं है। बस शांत मन से अकेले में बैठकर विचार करें कि—— नाम किसका लगाना है यानि अपनी गलती के लिए जिम्मेदार किसको ठहराया जाये। आज हमारा प्रयास यही रहता है। किसी एक को ढूॅंढ़े अपनी असफलता के लिए जिम्मेवार।
प्रसिद्ध उद्योगपति श्री रतन टाटा के वक्तव्य है— मैं अपने निर्णय को कभी गलत नहीं मानता हूॅं, बल्कि अपने लिेये गये गलत निर्णय को सही करे दिखाता हूॅं। मतलब हम जो कर रहें हैं, बेशक वर्तमान में उसमें लाभ नहीं हो रहा हो लेकिन हममें अपने में यह क्षमता विकसित करनी चाहिए कि ऐसी परिस्थितियों को हम भविष्य में लाभदायक स्थिति में ला सकें। हम क्या हैं? यह महत्वपूर्ण नही हैं। हम क्या बनने के लिए क्या कर रहे हैं। यह महत्वपूर्ण है। हम सबकुछ चाहते हैं पर करते कुछ नहीं, जब्कि हमें सबकुछ करना चाहिए एक चाहत के लिए।
तो आईये नये और पुराने साल को भूलकर इस सदी में भी सफलता पूर्वक जीवन यापन करने का निर्णय लेकर शत—प्रतिशत यत्न करें। इसी से अपना और मानव समाज का कल्याण होगा, यही मेरी मंगलकामना भी है।
आज के समय में करोड़ों लोग निरक्षर हैं। क्या वे वास्तव में ईक्कीसवीं शताब्दी में हैं? साक्षरता कई शताब्दी पूर्व से ही चलन में है। बीसवीं या उन्नीसवी सदी में आविष्कृत वस्तुएॅं अभी भी सबके पहुॅंच से दूर हैं। ये वस्तुएॅं जिनके पहुॅंच से दूर है क्या वे वास्तव में ईक्कीसवीं सदी में हैं? आज मंगलयान—चंद्रयान मी बात होनी चाहिए, तो हम पुष्पक विमान, रामायण, महाभारत में अपनी श्रेष्ठता खोजने या साबित करने के प्रयास में हैं। दुनिया रोबोट से काम करनवाने के प्रयास में हैं तो हम समुद्र में सेतु की रहस्य समझाने में लगे हैं। असल में हम लोगों को पुरानी बातें बता कर, सिखाकर एवं समझाकर उन्हें होशियार नहीं बना रहें हैं या बना सकते हैं, बल्कि हम उन्हें मजबूर कर रहें हैं पिछली शताब्दियों में जीने के लिए। वर्तमान में जीने का प्रयास करना ही वास्तव में जीवन हैं।
साल नया उनके लिए होता है जो नये साल की उपलब्धियों को अपने आप में समाहित कर सके। समाज को अपने ओर से कुछ नया दे सके और समाज से नया लेने में भीव वे सक्षम हो। मानव आबादी का एक बड़ा हिस्सा तो ऐसे लोगों का है, जो कुछ नया समाज को दने लायक नहीं है। देना तो दूर की बात है वे समाज से नया लेने में सक्षम भी नहीं हैं। सच मानिये एसे करोड़ों—अरबों लोगों के नया साल कभी नया नहीं होता है। ये कई पीढ़ियों से एक ही साल एक ही सदी में जी रहें हैं। समय का पहिया घूमता है इनके लिए सच नहीं है। इनके लिए समय भी स्थिर है, और मजे की बात —समय को इन्होंने स्वयं रोक रखा है। एक ही साल और सदी में पीढ़ी दर पीढ़ी जीने में इन्हें मजा भी आ रहा है। पुराने सदी के लोगें का शिकायत एक बढ़िया औजार था। आज भी हम इस औजार को और धारदार बनाने में जुटे हैं। सोशल मीडिया पर एक अच्छा हास्य प्राप्त हुआ— कभी कोई गलती हो जाये तो घबराने की जरूरत नहीं है। बस शांत मन से अकेले में बैठकर विचार करें कि—— नाम किसका लगाना है यानि अपनी गलती के लिए जिम्मेदार किसको ठहराया जाये। आज हमारा प्रयास यही रहता है। किसी एक को ढूॅंढ़े अपनी असफलता के लिए जिम्मेवार।
प्रसिद्ध उद्योगपति श्री रतन टाटा के वक्तव्य है— मैं अपने निर्णय को कभी गलत नहीं मानता हूॅं, बल्कि अपने लिेये गये गलत निर्णय को सही करे दिखाता हूॅं। मतलब हम जो कर रहें हैं, बेशक वर्तमान में उसमें लाभ नहीं हो रहा हो लेकिन हममें अपने में यह क्षमता विकसित करनी चाहिए कि ऐसी परिस्थितियों को हम भविष्य में लाभदायक स्थिति में ला सकें। हम क्या हैं? यह महत्वपूर्ण नही हैं। हम क्या बनने के लिए क्या कर रहे हैं। यह महत्वपूर्ण है। हम सबकुछ चाहते हैं पर करते कुछ नहीं, जब्कि हमें सबकुछ करना चाहिए एक चाहत के लिए।
तो आईये नये और पुराने साल को भूलकर इस सदी में भी सफलता पूर्वक जीवन यापन करने का निर्णय लेकर शत—प्रतिशत यत्न करें। इसी से अपना और मानव समाज का कल्याण होगा, यही मेरी मंगलकामना भी है।
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