मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Tuesday, December 13, 2016

काम अधिक बातें कम।

बंधुओं, मेरे विचार से लोगों के चार श्रेणियॉं — अशिक्षित, अल्पशिक्षित,अर्द्धशिक्षित एवं शिक्षित होते हैं। अशिक्षित श्रेणी से सब अवगत हैं। अल्पशिक्षि​त श्रेणी के लोग सिर्फ सा​श्रर हैं।  शिक्षि​त वे हैं जो शैक्षिक एवं आर्थिक रूप से संपन्नता हासिल कर चुके हैं।  बॉंकी लोग अर्द्धशिक्षित श्रेणी के हैं।  जैसे—जैसे कोई समाज या देश प्रगति करता है, इस श्रेणी के लोगों की संख्या में वृद्धि होती जाती है।  यानि विकासशील देशें में अ​र्द्धशिक्षितों की संख्या अधिक होती है और विकसित देशों में शिक्षितों की संख्या अधिक होती है।  स्वाभाविक है गरीब एवं अविकसित देशों में अशिक्षितों एवं अल्पशिक्षितों की संख्या अधिक होगी।  


अर्द्धशिक्षित लोगों की ऐसी श्रेणी हैं जिसमें बेरोजगारों की संख्या सर्वाधिक है।  इस श्रेणी बेरोजगारों की श्रेणी कह सकते हैं।  भारत में भी अर्द्धशिक्षित बेरोजगार कम नहीं है।  हलांकि सरकार द्वारा इन्हें शिक्षित बेरोजगार कहा जाता है और कुछ राज्य सरकारें इन्हें शिक्षित बेरोजगारी भत्ता भी दे रही है।  यह कितनी हास्यास्पद बात है जो खुद को और जिसे सरकार शिक्षित मान रहे हैं, बेरोजगार हैं।  इन बेरोजगारों के अथाह ज्ञान होता है— इनके बेरोजगार रहने का, असफल होने का। ये सामाजिक, राजनैतिक मुद्दे पर लगातार कई घंटों, दिनों, महीनों, सालों और ताउर्म बहस कर सकते हैं।  असल में ये लोग बहस कर नहीं सकते बल्कि इन मुद्दों पर बहस करना ही इनका मुख्य कार्य होता है।  ये अपने अलावा हर किसी पर आरोप—प्रत्यारोप लगा सकते हैं।  राजनीति में इन्हें महारात हासिल होता है।  अगर अर्द्धशिक्षित श्रेणी के लोगों को कुछ करने के लिए कहा जाये तो ये काम नहीं करने के हजारों कारण गिना सकते हैं।

बंधुओं, असल में भारत जैसे विकासशील देश में हर क्षेत्र में अपार संभावनाएॅं है।  हर क्षेत्र में अभी भी गुणवत्ता का अभाव है।  चाहे वो छोटा काम या क्षेत्र हो सब जगह गुणवत्ता का अभाव है।  प्राथमिक विद्यालयों में ढंग का शिक्षक—शिक्षिकाएॅं नहीं हैं।  हजारों की संख्या में प्राथमिक विद्यालयों के शि​क्षक—शिक्षिकाएॅं ऐसी हैं, जिन्हें सप्ताह के सातों दिनों या वर्ष के 12 महीनों का नाम शुद्ध—शुद्ध लिखना नहीं आता है।  इसी तरह अन्य क्षेत्र है, चाहे वह स्वास्थ्य हो या अन्य कोई स्वरोजगार हो गुणवत्ता का अभाव है।  इसी वजह बहुराष्ट्रीय कंपनियॉं यहॉं लगातार फल—फूल रही है। 

बातें हम लगातार कर सकते हैं।  योजनाएॅं भी अच्छी बना सकते हैं।  लेकिन जब काम करने की बारी आती है तो हम काम को कल पर टाल देते हैं।  और कल फिर कल पर यह सिलसिला लगातार चलता रहता है।  अंतत: हम काम शुरू करने में ही असफल हो जाते हैं।  हम अर्द्धशिक्षितों में सबसे बड़ी कमी यही है।  अगर बातें करने के बजाय सिर्फ कोई काम  शुरू कर दें।  चाहे वह काम छोटा से छोटा ही क्यों नहीं हो हलांकि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता है और उस काम को अनवरत सही दिशा में प्रयास करते रहें तो उसकी काम या क्षेत्र में हमें अपार सफलता मिलेगी। इस तरह के अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं।  आज के बड़े—बड़े उद्योगपतियों के पास शुरूआत में कुछ भी नहीं था। 

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