मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Monday, December 12, 2016

अगर बड़ा बनना है तो सफलता का श्रेय दूसरों को और असफलता की जिम्मेदारी खुद लिजिये।

बंधुओं बड़ी—बड़ी प्रतियोगिताओं में जब कोई सर्वश्रेष्ठ आता है तो उनसे पूछा जाता है कि आप अपने सफलता का श्रेय किसे देंगे? वे लोगी बड़ी शालीनता एवं गर्व से ईश्वर, माता—पिता, गुरू/कोच, परिवार एवं दोस्तों और अंत में अपने अभ्यास को अपनी उपलब्धि का श्रेय देते हैं।  सफल उद्योगपतियों से अगर यह सबाल पूछा जाये तो वे अपने टीम एवं कामगार का नाम लेगे। इसके विपरीत एक साधारण सा असफल प्रतियोगी से यही सबाल पूछा जाये कि उनके असफलता के लिए जिम्मेदार कौन है? तो वे अपने अलावे सभी का नाम बता देंगे,परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होना, परिवार का शिक्षित नहीं होना, परिवार का माहौल ठीक नहीं होना, परिस्थिति अनुकूल नहीं होना, प्रतियोगिता निष्पक्ष नहीं होना, सरकार की गलत नीति,समय अनुकूल नहीं होना, अच्छे गुरू/कोच का अभाव होना इत्यादि इत्यादि। इस तरह उनकी असफलता के लिए जिम्मेदावर लोगों एवं परिस्थितियों कल सूचि लंबी होती चली जाएगी पर उसमें स्वयं उनका नाम नहीं होगा। अगर उनके असफल होने का एक कारण हो तो वे उसका निदान कर अगली बार फिर से प्रतियोगिता में सफल हो सकते हैं, लेकिन अगर कारण हजार हों तो बेचारा किसका—किसका निदान करेंगे। इससे बेहतर उनके लिए होता है कि वे प्रतियोगिता से ही हट जाते हैं और जीवनभर आरोप—प्रत्यारोप के खेल में पारंगता हासिल करते रहते हैं। 

इस देश का दुर्भाग्य ही है कि मजदूर और समान्य लोग जितनी राजनीति जानते हैं, उतनी तो अन्य देशों के राजनेता भी नहीं जानते।  आप रेल के सामन्य कोचों से लेकर चाय की दुकान पर अव्वल दर्जे का राजनैतिक बहस सुन सकते हैं।   आरोप—प्रत्यारोप में सब माहिर है। स्वयं दिनभर कुछ करेंगे नहीं लेकिन अपनी विपन्नता का जिम्मेदारी सीधे प्रधानमंत्री पर ​थोपेंगे।  छात्र अध्ययन के अलावा सब कुछ करते दिखेंगे, लेकिन अपनी बेरोजगारी के लिए जिम्मेदार आरक्षण का होना या पर्याप्त आरक्षण का नहीं होना को मानेंगे।

भ्रष्टाचार में लिप्त व्यापारी, सरकारी कर्मचारी को भ्रष्ट कहेंगे। और ये दोनों मिलकर राजनेताओं को भ्रष्ट कहेंगे। आम जनता खुद को पाक साफ लेकिन इन तीनों को भ्रष्ट कहेंगे। जिम्मेदवारी से भागना ही अवनति का मूल कारण है।  कभी—कभी हमें खुद के अंदर झॉंकना चाहिए।

अगर हम अपनी असफलताओं की जिम्मेदारी लेते हैं तो हमें अपनी गलतियों को ढूॅंढ़ने का मौका मिलेगा और उन गलतियों से भविष्य के​ लिए सीख भी मिलेगी।  हम उन गलतियों को नहीं करने का उपाय तलाश करेंगे। और पूरी तैयारी के साथ भविष्य में सफलता के लिए प्रयास करेंगे। और सफल होगें।

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