हर घर में दीप जले,
हर उपवन में फूल खिले।
भूलकर गिले शिकवे,
आपस में सब गले मिले।
मेरी अभिलाषा है।
जाति धर्म के लिए न कोई लड़े,
सीमा सरहद पर न बहे ख़ून.
न उजड़े मांग किसी का,
न किसी का हो गोद सून.
मंदिर- मस्जिद न टूटे,
न हो सांप्रदायिक तनाव।
भाई-भाई का दुश्मन न हो,
सबके ह्रदय में हो प्रेम भाव।
मेरी अभिलाषा है।
भू न बँटे लकीरों से,
बिहागों सा सबका हो घर-बार।
पूरब-पश्चिम का भेड़ न हो,
सब करे आपस में प्यार।
मेरी अभिलाषा है।
स्वच्छंद विचरण करे बिहगों सा नभ में,
रोक-टोक न हो जग में।
मुक्त हस्त से बाँटे सब धन धान्य,
डूबे न कोई कभी आलस्य प्रमाद में।
मेरी अभिलाषा है।
दूध के लिए न कोई बच्चा रोये,
रोटी के लिए न करे कोई देह व्यापार।
भयमुक्त हो सारा विश्व,
निर्बलों,असहायों पर न हो अत्याचार।
मेरी अभिलाषा है।
संजय कुमार निषाद
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