मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Monday, July 23, 2007

मेरी अभिलाषा

हर घर में दीप जले,

हर उपवन में फूल खिले।

भूलकर गिले शिकवे,

आपस में सब गले मिले।

मेरी अभिलाषा है।


जाति धर्म के लिए न कोई लड़े,

सीमा सरहद पर न बहे ख़ून.

न उजड़े मांग किसी का,

न किसी का हो गोद सून.


मंदिर- मस्जिद न टूटे,

न हो सांप्रदायिक तनाव।

भाई-भाई का दुश्मन न हो,

सबके ह्रदय में हो प्रेम भाव।

मेरी अभिलाषा है।


भू न बँटे लकीरों से,

बिहागों सा सबका हो घर-बार।

पूरब-पश्चिम का भेड़ न हो,

सब करे आपस में प्यार।

मेरी अभिलाषा है।


स्वच्छंद विचरण करे बिहगों सा नभ में,

रोक-टोक न हो जग में।

मुक्त हस्त से बाँटे सब धन धान्य,

डूबे न कोई कभी आलस्य प्रमाद में।

मेरी अभिलाषा है।


दूध के लिए न कोई बच्चा रोये,

रोटी के लिए न करे कोई देह व्यापार।

भयमुक्त हो सारा विश्व,

निर्बलों,असहायों पर न हो अत्याचार।

मेरी अभिलाषा है।

संजय कुमार निषाद

 

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