मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Tuesday, July 17, 2007

हमें न चाँद चाहिए, न चमन चाहिए।

हमें न चाँद चाहिए , न चमन चाहिए।

हमें अपने ही घर में अमन चाहिए।


पड़ोसियों के ताप से कश्मीर पिघल रहा है।

स्वच्छंदता के लिए असाम , नागालैंड मचल रहा है।

आपसी वैमनस्यता की खाई में,

बिहार, उड़ीसा और आन्ध्र जल रहा है।

बुझाए जो इन ज्वालाओं को हमें वह तेज पवन चाहिए।

हमें अपने ही घर में अमन चाहिए।



आतंकवाद, अलगाववाद बढ़ता जा रहा है।

पडोसी नित नए नए कारनामें गढ़ता जा रहा है।

न्याय नीति की सीमा लांघकर हमें बाँधने को,

वेशर्मों की तरह दोष हमपर मढ़ता जा रहा है।

हमे बाँधने को यह छुद्र नीति नहीं मित्रता की पवित्र बन्धन चाहिए।

हमें अपने ही घर में अमन चाहिए।



मस्जिद में न सिसके अल्लाह ,

मंदिर में न रोये ईश्वर।

प्रेम सहिस्नुता, भाईचारा के लिए,

सलीब पर न फिर चढ़े गिर्जेवाले परमेश्वर।

हमें भय भेदभाव मुक्त सुंदर स्वच्छ वतन चाहिए।

हमें अपने ही घर में अमन चाहिए।



इंच भर जमीन के खातिर लड़े न सीमा पर भाई हमारा।

उजड़े न किसी की मांग, सूना हो ना किसी का गोद।

असहाय , निर्बलों शोषितों का ख़ून पीकर,

उनके कब्र पर अट्टालिका बनाकर ना कोई करे मनोविनोद।

किसी कली को मसले न कोई, हमें वह उपवन चाहिए।

हमें अपने ही घर में अमन चाहिए।

संजय कुमार निषाद

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