मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Friday, April 11, 2008

धर्म परिवर्तन पर कानून

राजस्थान की भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने राज्य में धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध लगाते हुए विधेयक पारित किया है।जिसके अनुसार यदि कोई जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराता है तो उस पर एक से पाँच वर्ष की सजा और 50 हजार रूपये जुर्माने का प्रावधान है। इसी तरह की कोशिश भाजपा शासित कई राज्यों में भी की गई। सरकार का कहना है कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ईसाई मिशनरी बहुत सक्रिय है, जिसके कारण विभिन्न प्रकार की समस्याएँ पैदा हो रही है। पढ़ाने लिखाने के नाम पर आदिवासी बच्चों का धर्म परिवर्तन किया जाता है। धर्म परिवर्तन से अलगाव का खतरा बढ़ता है। इत्यादि। सरकार की चिंता जायज है। मिशनरी में आदिवासी बच्चे को शिक्षित किया जाता है। इस पर कानून बनाकर तो रोक लगानी ही चाहिए, क्योंकि भारत में उपेक्षितों, दलितों, आदिवासियों को शिक्षा का अधिकार कहाँ है? उन्हें समाज में उठने-बैठने, ढंग का कपड़ा पहनने का अधिकार कहाँ है? अगर मिशनरी वाले उन्हें पढ़ा-लिखाकर मानव बनाने की चेष्टा करता है तो उस पर जुर्माना तो लगाना ही चाहिए। अलगाववाद का खतरा भी बढ़ेगा, जब आदिवासी शिक्षित होकर अपना अधिकार मांगेगा तो भयंकर खतरा उत्पन्न होगा। वे देश-दुनिया के बारे में जानेगा, लोकतंत्र के बारे में जानेगा, फिर उनकी वोटों की कीमत देशी शराब नहीं होगा बल्कि वोटों की कीमत के रूप में वे अपना विकास चाहेगा, फिर सरकार के लिए तो समस्याएं पैदा होगी ही। आज जो सरकार निरंकुश है कल उस पर उन आदिवासियों का भी अंकुश लग जायेगा, जिसे समाज कभी भी पशु के बराबर भी नहीं बल्कि पशु से भी गया-गुजरा समझता था। इन समस्याओं से निबटने के लिए सरकार जो समय रहते कठोरतम एवं सही तरीका अपनाया है, सराहनीय है। इस प्रशंसनीय कार्य के सरकार को साधुवाद देना चाहिए। इस तरह की सोच ही भारत को एक विकसित देश बनाने में मदद करेगा, और लोकतंत्र का वास्तविक चेहरा सामने आयेगा। उपेक्षितों के वोटों की कोई महत्व लोकतंत्र में नहीं है। मिशनरी वाले पागल हैं वे उन्हें मानव बनाना चाहते हैं जिसे मानव कहलाने का कोई हक नहीं है। उन्हें धर्म से जोड़ते हैं,जिनका कोई धर्म नहीं है। भरतीय जनता पार्टी का काम रामसेतु की रक्षा करना है, बाबरी मस्जिद को तोड़ना है। आदिवासी अशिक्षित हैं तो उन्हें अशिक्षित रहना चाहिए। हमारा इतिहास भी यही कहता है। हिन्दू धर्म के अनुसार तो शिक्षा तो सीमित लोगों के लिए ही आरक्षित है। आदिवासी के हिस्से में तो शिक्षा है ही नहीं। फिर ये आदिवासी एवं मिशनरीवाले घोर अपराध क्यों कर रहें हैं? उनके लिए तो और कठोरतम सजा का प्रावधान होना चाहिए।


आजादी के 60 साल बाद भी उन आदिवासी इलाके में जहाँ सरकार एक प्राथमिक विद्यालय स्थापित नहीं कर पाये । वहाँ मिशनरी वाले महाविद्यालय तक बना डाले। यह सरकार को खुली चुनौती है कि नहीं। सरकार को इस पर लगाम लगाना ही चाहिए। दरअसल सरकार को इसकी चिंता कतई नहीं है कि आदिवासी धर्म परिवर्तन कर रहें हैं। एकाध लाख आदिवासी के धर्म परिवर्तन करने से उनके धर्म को कोई फर्क पड़नेवाला नहीं है। वैसे भी इन पशुवत् जीवन जी रहे अशिक्षित आदिवासी धर्म के मर्म को क्या जाने ? वे धर्म को दे भी क्या सकते हैं, वे मंदिर में चढ़ावा चढ़ाने से तो रहा। जब खाने के लाले पड़े हो तो मंदिर में चढ़ावा क्या खाक चढ़ायेंगे? सरकार को इसकी चिंता खाये जा रही है कि आदिवासी भी शिक्षित हो रहे हैं।


भूखे-नंगे का कोई धर्म होता है क्या? अगर हो भी सकता है तो रोटी के अलावा उसका और कोन सा धर्म हो सकता हैं? अगर भारतीय जनता पार्टी या हिन्दूत्ववादी संगठन को धर्म की इतनी ही चिंता है तो उन आदिवासियों को अपने से शिक्षित करने का जिम्मा लें। मिशनरी वाले अगर शिक्षा का लालच दे रहे हैं तो सरकार या हिन्दु संगठन भी वहाँ विद्यालय स्थापित कर सकते हैं, लेकिन सरकार या इसकी संगठन ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि ऐसा करने से उनकी धर्म की हानि होगी। आदिवासी जैसे अछूत प्राणी को वे शिक्षा का दान नहीं दे सकते। इसमें उन्हें मेहनत भी करना होगा। सिर्फ नारा, धरना प्रदर्शन की बात होती तो कर भी लेते। भारतीय जनता पार्टी शायद भूल रही है, कि इसका दूरगामी परिणाम भयानक हो सकता है। एम॰सी॰सी॰ जैसे नक्सली संगठनों को जन्म ऐसे ही तुगलकी फरमान के प्रतिरोध करने के लिए हुआ है। वे ऐसे मौके पर नये क्षेत्रों में अपनी जमीन तलाशती है। अलगाववाद, नक्सलवाद धर्म परिवर्तन पर प्रतिबंध से बढ़ सकती है। न कि जो सरकार तर्क दे रही है, धर्म परिवर्तन से अलगाववाद की समस्या बढ़ सकती है। धर्म निरपेक्ष देशों में आप किसी भी धर्म के अनुयायियों पर इस तरह आरोप नहीं लगा सकते हैं कि वे देशभक्त नहीं हैं या होंगे। क्या वास्तव में सभी हिन्दू देशभक्त है, अगर हैं भी वे ये कैसे तय कर सकते हैं कि दूसरे नहीं हैं।


हाल में ही केन्द्र सरकार ने एक विधेयक पारित किया कि गरीब, पिछड़े समाज के बच्चों के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था हो। इसमें उन्होंने यह भी निश्चित किया कि इससे इन संस्थानों में सामान्य श्रेणी के सीटों की संख्या नहीं घटायी जाऐगी। यह एक सराहनीय प्रयास माना जा सकता है। दो चार लोगो के अमीर हो जाने से देश का विकास अगर हो सकता तो भारत में आज 40 प्रतिशत की आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर नहीं करती। देश का विकास तब होगा जब एक एक जनता को सारी सुविध मिलेगी। सभी साक्षर होगें। देश की मुख्यधारा से जो पीछे छूट गये हैं सरकार एवं विकसित समाज का प्रयास होना चाहिए कि उन्हें सहायता देकर मुख्यधारा में लायें, न कि कानून बनाकर अनको शिक्षा जैसे अधिकार से बंचित करने का प्रयास करें । हिन्दूवादी संगठन या सरकार यदि सचमुच में धर्म का विकास करना चाहते हैं तो सबसे पहले उनलोगों को जो सदियों से उपेक्षित है शोषित है को मुख्यधारा में लाने का प्रयास करें। वर्णा धर्म का विकास नहीं संकुचन होगा।

3 comments:

ऑफ मूड said...

मित्र,
आपने सही लिखा है, मैंने भी लिखा था कि कानून बनाकर धर्म परिवर्तन रोकने की जरूरत नहीं है, बल्कि हिंदू धर्म को अक्षुण्य रखने के लिए समाज में व्याप्त छुआछूत जैसी बुराइयों को दूर करने और लोगों की मानसिकता बदलने की जरूरत है।..

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

पढने-लिखने के बाद कोई अधिकार नहीं मांगता बंधू, और ज्यादा कायर हो जाता है. देखिए जो लोग इंग्लैंड से पढ़कर आए सबने यही समझाया की आजादी लड़ाई से नहीं भीख में मिलेगी. और आज हमारी नई पीढ़ी यही समझ भी रही है. हिंदुस्तान में पढे-लिखे वे लोग जो क्रांतिकारी बने और जिन्होंने अपनी जान दी वे तेल बेचने चले गए और पब्लिक अब यूरोप से आई बिल्लो रानी से पूछ रही है 'कहो तो अपनी जान दे दूँ ..............'

दिनेशराय द्विवेदी said...

समाज को बदलने, गिरे को उठने के साधन जुटाने की रुचि किसी में नहीं। रुचि और जरुरत है तो सिर्फ वोट और नोट बनाने में। धर्म स्वातंत्र्य विधेयक केवल दमन का हथियार बनेगा।