बिहार के माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतिश कुमार भले ही सुशासन का दावा कर रहे हों, लेकिन वहाँ के एक विश्वविद्यालय द्वारा इस सुशासन को धता बताते हुए मनमानी फैसले लिया जा रहा है। विश्वविद्यालय के इस मनमानी फैसले से लगभग सतरह हजार छात्रों को भविष्य दाँव पर लगा है। विश्वविद्यालय अपने मनमानी फैसले से इन 17000 छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर हैं और महामहिम कुलाधिपति एवं माननीय मख्यमंत्री महोदय तमाशाबीन बने बैठे हैं। यही तो है असली सुशासन।
बिहार के मधेपुरा में एक विश्वविद्यालय है, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय । यह विश्वविद्यालय वहाँ के तत्कालीन मुख्यमंत्री एवं वर्तमान रेल मंत्री माननीय श्री लालू प्रसाद द्वारा स्थापित की गई थी। सन् 1992 से 1998 तक विश्वविद्यालय द्वारा परीक्षा समिति की विभिन्न बैठकों जिनमें बैठक संख्या-45 दिनांक 20/01/1996, बैठक संख्या-38 दिनांक 10/06/1996, बैठक संख्या-49 दिनांक 30/04/1997 ,बैठक संख्या-54 दिनांक 28/11/1997 ,बैठक संख्या-55 दिनांक 15/01/1998 बैठक संख्या-59 दिनांक 27/07/1998 ,बैठक संख्या-60 दिनांक12/10/1998 प्रमुख है, में निर्णय लेकर कुल सतरह हजार छत्तीस छात्रों को कृपांक देकर उत्तीर्ण किया गया। कृपांक पाने वाले में स्नातक, स्नाकोत्तर, विधि स्नातक, एम॰बी॰बी॰एस॰ एवं बी॰एड॰ के छात्र शामिल थे। इसके बाद विश्वविद्यालय द्वारा कृपांक आधारित उत्तीर्ण इन छात्रों के प्रमाण पत्रादि के निर्गमन पर रोक इस लिए लगा दिया गया कि कृपांक परिनियम के विरूद्ध है। एक पीडि़त छा+त्र द्वारा माननीय उच्च न्यायालय पटना में मुकदमा दायर किया तो मा॰ न्यायालय द्वारा पीडि़त छात्र के पक्ष में आदेश सी.डब्लू.जे.सी. संख्या-8836/2003 दिया गया। उस आदेश के आलोक में विश्वविद्यालय की परीक्षा समिति की बैठक संख- 115 दिनांक 20.10.2004 में कृपांक आधारित उत्तीर्ण छात्रों के प्रमाण पत्र निर्गत करने का निर्णय लिया गया एवं सैकड़ों छात्र के प्रमाण पत्र भी निर्गत किया गया।
इसके बाद विश्वविद्यालय की परीक्षा समिति, जिसकी अध्यक्षता माननीय कुलपति महोदय द्वारा की जाती है, की बैठक संख्या- 137 दिनांक 25.05.2007 में निर्णय लेकर कृपांक आधारित उत्तीर्ण छात्रों के प्रमाण पत्र निर्गमन पर रोक लगा दी गई। इस प्रकार फिर से 17000 छात्रों के भविष्य दाँव पर लगा दिया गया। सुशासन है कि नहीं। अगर कृपांक परिनियम के विरूद्ध था तो विश्वविद्यालय द्वारा इतने छात्रों को क्यों दिया गया था? क्या परीक्षा समिति के सदस्यों को पता नहीं था कि कृपांक देकर इतने इतने छात्रों का वे भविष्य बरबाद कर रहे हैं? अगर कृपांक परिनियम के विरूद्ध था तो माननीय उच्च न्यायालय पटना द्वारा एक पीडि़त छात्र के पक्ष में कैसे आदेश दिया गया ? अगर कृपांक परिनियम के विरूद्ध था तो विश्वविद्यालय की परीक्षा समिति की बैठक संख 115 दिनांक 20.10.2004 द्वारा कृपांक आधारित उत्तीर्ण छात्रों के प्रमाण पत्रादि पर से रोक हटाया क्यों गया? इस तरह के कई सबाल जब सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के अंतर्गत् लोक सूचना अधिकारी , भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा, महामहिम राज्यपाल सचिवालय एवं माननीय मुख्यमंत्री कार्यालय से जब पूछा गया तो या तो सूचना नहीं दी या दी गई तो गलत। हाँ सुशासन में सूचना का अधिकार भला किसे प्राप्त है? बिहार में पहले भी कोई कानून नहीं था, तो अब कैसे रह सकता है । रोज नियम कानून सबेरे बनाया जाता है, दोपहर में लागू होता है और शाम में तोड़ा जाता है।
इस ब्लोग के माध्यम से मैं विधि के जानकार बंधुओं से जानना चाहता हूँ कि विश्वविद्यालय द्वारा किये जा रहे इस मनमानी फैसले के विरूद्ध और कहाँ-कहाँ शिकायत एवं समाधान हेतु आवेदन दी जा सकती है, ताकि 17000 छात्रों के भविष्य की रक्षा की जा सके।
ज्ञातव्य हो-
एक छात्र द्वारा अकेले माननीय उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया गया था। जिसका फैसला उस पीडि़त छात्र के पक्ष में हुआ था, एवं विश्वविद्यालय द्वारा परीक्षा समिति की बैठक में निर्णय लेकर उक्त छात्र का प्रमाण पत्र निर्गत किया गया। अब सभी छात्र अलग-अलग मुकदमा तो कर नहीं सकता है एवं सभी छात्रों को इकट्ठा करना भी मुश्किल काम है।
राज्य के विश्वविद्यालय के महामहिम कुलाधिपति महोदय के कार्यालय द्वारा कहा गया कि यह मामला विश्विद्यालय के कुलपति महोदय के क्षेत्राधिकार में है।
माननीय मुख्यमंत्री कार्यालय भी शिकायत पर मौन है।
अतः विधिवेत्ता बंधुओं से अपील है कि वे इस मामले पर कोई सलाह दे सकते हैं तो कृपया मुझे sanjayknishad@gmail.com पर ई. मेल करने का कष्ट करें।
1 comment:
RTI का प्रयोग करें और सारी बातें पता कर गड़बड़ियों को उजागर करें.
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