मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Tuesday, April 15, 2008

बिहारी, नहीं..........नहीं....

बिहारी’ शब्द आज भारत के संभ्रात राजयों में गाली माना जाने लागा है। यहाँ तक खुद बिहारी भी खुद को बिहारी कहलवाना या मानना पसंद नहीं करता है। पंजाब के निवासी पंजाबी महाराष्ट्र के निवासी मराठी कहलवाना अपनी शान समझते हैं। क्या बिहारी वाकई में इतने बुरे हैं? जिस प्रकार अंग्रेज भारतीय को ‘ब्लडी इंडियन’ कहकर गाली देते थे।आज उसी तरह बिहारियों को बिहारी कहकर गाली दिया जा रहा है। क्या भारत देश में बिहारियों को रहने-बसने या कोई काम-धंधा करने का हक नहीं है? क्या इनके रहने -बसने से वाकई में किसी हिस्से या प्रांत का प्रगति बाधित हो रही है? कुछ इसी तरह के सबाल बार-बार मेरे मन को कुरेद रहा है।


आज बिहार में गरीबी है, पिछड़ापन है जाति वाद भी है। इस सत्य को झुठलाया नहीं जा सकता है, लेकिन इस सब के बावजूद भी बिहार में प्रांतवाद, क्षेत्रवाद या भाषावाद नहीं है। देश के प्रति ईमानदारी वास्तव में बिहार में ही है। बिहारी अस्मिता हमेशा राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ी रही है। भगवान महावीर, भगवान बुद्ध, राजा जनक, दानी कर्ण, राजनायिक चाणक्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, अजातशत्रु, अशोक महान, अश्वघोष, नागार्जुन, जीवक, आर्यभट्ट जैसे महापुरूष जिस क्षेत्र में जन्म लेकर भारत को अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलायें हैं। आज वही बिहारी गाली के रूप में प्रयुक्त होने लगा है।


बिहार को बीमार रखने में वहाँ के आम जनता राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार का योगदान बराबर रहा है। आम जनता के बीच भेदभाव जातिवाद के कारण हमेशा टकराव होते रहता है। परिणामतः समाज विकास के बजाय विनाश की ओर अग्रसर होते रहता है। राज्य सरकार के लिए वहाँ विकास कभी भी कार्यसूची में नहीं रहा है। राजनेताओं में ईच्छाशक्ति की कमी के कारण राज्य का हालत बद से बदतर होता रहा है। केन्द्र सरकार भी हमेशा से बिहार के साथ सौतेला व्यवहार किया है। प्रत्येक वर्ष आने वाली प्रलयकारी बाढ़ का निदान केन्द्र स्तर पर ही हो सकता है, क्योंकि इसे रोकने लिए नेपाल से समझौता करना पड़ेगा। लेकिन केन्द्र सरकार प्रत्येक वर्ष मूर्क दर्शक बने देखती रहती है।


बिहार से पलायन रोकने के लिए वहाँ उद्योग-धंधे स्थापित करने होंगे, और उद्योग-धंधे के लिए भयमुक्त वातावरण का होना बहुत जरूरी है। बिहार में भयमुक्त वातावरण बनाना थोड़ा कठिन तो है।अगर सरकार एवं आम जनता चाहे तो यह असंभव भी नहीं है। बिहार भले आर्थिक रूप से पिछड़ा प्रदेश रहा है, लेकिन बौद्धिक और राजनैतिक रूप से यह प्रदेश हमेशा से उर्वर रहा है। पर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग बिहार से पलायन तो करते ही है, बुद्धिजीवि वर्ग भी वहाँ से पलायन करने में पीछे नहीं रहते हैं।


देश के कई प्रांतों में बिहारियों पर भाषावाद-क्षेत्रवाद के नाम पर हमला लगातार हो रहा है। बिहारी नेता इसका समाधान करने के बजाय वाक्युद्ध से ही निपटाने पर विश्वास कर रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि गाँवों एवं पिछड़े क्षेत्रों से पलायन के कारण नगरों-महानगरों पर दबाब बढ़ता ही जा रहा है। जिसके वजह से वहाँ की शासन को मूलभूत सुविधा भी मुहैया कराने में परेशानी हो रही है। आजतक केन्द्र सरकार में जितने केन्द्रीय मंत्री बिहार से हुए हैं अगर वे सिफ्र अपने-अपने चुनाव क्षेत्र का भी थोड़ा विकास कर देते तो आज बिहार सबसे विकसित राज्य रहता। सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप से क्षेत्र का विकास नहीं होता है। जनता सरकार को सरकार पूर्ववत्र्ती सरकार को कोसती रहती है। सच तो यह है वहाँ- हमाम में सब नंगे हैं।

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