मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Wednesday, October 5, 2016

अमर शहीद जुब्बा सहनी के प्रति

जुब्बा चैनपुर का ध्रुवतारा,

भारत का अनमोल लाल था।

दीन -हीन असहायों का बल,

मूक ह्रदय का झंकृत ताळ था।


जुब्बा नाम था उस शूरवीर का,

निरंतर जलाये थे जो क्रान्ति की मशाल।

जुब्बा नाम था, उस भारतरत्न का,

भारत माँ को जो किया निहाल।


जुब्बा गरीबी को देखा ही नहीं बल्कि,

गरीबी में पल-बढकर चलना सीखा था।

गुलाम था गोरों के पर स्वाभिमान को,

गिरवी रखकर नहीं जीना सीखा था।


जुब्बा अन्याय अत्याचार देखकर,

चुप कहॉ रहने वाला था?

अंतिम सांस तक वह,

दुष्ट पापियों से लड़ने वाला था।


जुब्बा मूक जड़-जंतुओं सा,

केवल खाने-पीने नहीं आया था।

वह तो सदियों से सोये,

जन-जन को जगाने आया था।


१९ मार्च ४४ का वह मनहूस दिन भी आया,

जब क्रूर गोरों ने उसे फांसी पर चदाया था।

क्योंकी उस लौहपुरुष ने अत्याचारी अन्यायी दरोगा,

मिस्टर बालर को थाने में ही जिंदा जलाया था।


छोड़कर जग को वह नभ का तारा,

चला गया नभ में।

देकर अपनी बलिदानी,

जगा दिया कुम्भ निन्द्रा से हमें। 

संजय कुमार निषाद

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