मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Wednesday, October 5, 2016

विश्व गुरू व्यास के प्रति

प्रति वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा को तुम्हारी याद लिए।

आसमान में बदल उमड़ आते हैं।

श्रद्धा - सुमन तुम्हें अर्पित करने को,

वर्षा की कुछ बूंदे झड़ जाते हैं।

मानव ही नहीं प्रकृति भी,

तुम्हारे वियोग से विक्षिप्त हैं।

नेत्रों से गिर रहे हैं बूंदे अश्कों के,

सबका हृदय आज द्रवित हैं।

युग -युग का पथ प्रदर्शक,

तू तिमिर विनाशी अमर-उजाला।

सनातन धर्मं के प्रबल पुरोधा,

तू मानवता के निर्भीक रखवाला।

तू वो मानव नहीं जो आकर,

अट्टलिकाऔं में विखर गए।

तू कुछ असाधारण करने हेतु,

देवों सा कण-कण में ठहर गए।

हाथी- घोड़ों के नहीं,

मानव चेतना के रथ पर चढा।

खोलने अज्ञानता का दुर्ग।

सबसे पहले तू ही आगे बढ़ा।

तू प्रभात की प्रथम किरण बन,

सदियों से सुप्त मानव को जगाया।

पल्लवित करने जीर्ण शीर्ण काया को,

ओस की बूंदे बन भू पर आया।

तू सागर की लहर बन,

अस्पृश्यता के तट से टकराया।

हम सब मानव एक ही पिता के पुत्र हैं,

यह संदेश जन-जन तक पहुंचाया। 

संजय कुमार निषाद

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