मंजिल तो पाना है।
शिखर पर जाना है।
चाहे कुछ भी हो जाये,
खुद से किये वादा निभाना है।
संजय कुमार निषाद
Sunday, October 30, 2016
गुलाब में भी कांटे होते हैं।
बहुत बड़े विद्वान,महात्मा, तपस्वी, राजनेता, शासक, व्यापारी या किसी क्षेत्र के असाधरण हस्तियों के सफलता का राज क्या है? आखिर भीड़ में कैसे वह सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर लेता है? अपने समान कार्यकत्ताओं को छोड़कर वह कैसे आगे निकल जाता है? दौड़ में अनेक प्रतियोगी भाग लेते हैं, लेकिन अव्वल जो आता है, उसमें क्या विशिष्टता रहती है? इन सब सबालों का एक ही जबाव है— परिश्रम। परिश्रम ही वह पालिश है जो किसी अंधकारमय जीवन को उज्ज्वल बना देता है। परिश्रम के अलावा कोई चारा नहीं है लेकिन संघर्ष भी जीवन और सफलता का एक अंग है। श्रम, संघर्ष और सफलता में चोली दामन का रिश्ता है।
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