किशोरवय में मस्तिष्क अपरिपक्व कोमल एवं अत्यन्त संवेदनशील रहता है। थोड़े दिनों में उनके शारीरिक संरचना में भी अनेक प्रकार के परिवर्तन हो जाते हैं। वे अपने को अचानक एक नया माहौल में पाते हैं, फलतः उपने शारीरिक परिवर्तन एवं अपने आस-पास होने वाले घटनाओं के प्रति अत्यधिक जागरूक रहते हैं। उनकी हार्दिक इच्छा होती है कि इन सब घटनाओं के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करें। अपने परिवार, अड़ोस-पड़ोस, समाज के क्रिया कलापों से कुछ शिक्षा ग्रहण करें। उन्हें जिस प्रकार का माहौल मिलता है] वे अपने को उस माहौल के अनुरूप ढ़ालने का कोशिश करता है। इस उम्र में अगर उन्हें अच्छा संसर्ग उचित नैतिक शिक्षा और स्वच्छ माहौल मिले तो निश्चय ही वह भविश्य में एक योग्य नागरिक सिद्ध होगा, क्योंकि किशोरावस्था में बालक -बालिकाओं का मन चंचल एवं कोरे कागज के समान होता है, उस पर अभिभावक जो लिख दे वह अमिट हो जाता है। गीली मिट्टी के समान होता है, उसे अभिभावक रूपी कुम्हार जिस साँचे में ढ़ाल दे, जैसा आकार गढ़ दे वह आकार स्थायी हो जाता है। इस उम्र में उन्हें अगर सही प्रशिक्षक मिले तो वे स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानंद, रामकृश्ण परमहंस, महात्मा गाँधी, सुभाषचन्द्र बोस, भगत सिंह, जुब्बा सहनी जैसे महापुरूष बन सकते हैं। वे अपने क्षेत्र में परिवार, समाज और राष्ट्र का नाम रौशन कर सकते हैं। इसके विपरीत उन्हें अगर गलत शिक्षा दिया जाये, वे गलत संगति दुव्र्यसनों का शिकार हो जाये, तो वे अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के गौरवशाली इतिहास को कलंकित कर देगा। जिंदगी भर वह अपने कुकृत्यों से सबको कष्ट पहुँचायेगा।
विश्व के अनेक आतंकवादी संगठन किशोरों को पकड़कर उन्हें दुर्व्यसनों का शिकार बनाकर उनके मस्तिष्क में ऐसा विष भर देता है कि वे परिवार समाज या देश के विरूद्ध आन्दोलन छेड़ देता है। फिर संगठन उन्हें प्रशिक्षित कर अपने मकसद के अनुरूप कुकृत्य करवाता है।
इससे यह निष्कर्श निकलता है कि जिंदगी का प्रथम सोपान किशोरावस्था ही है। इस अवस्था मे जैसा सोचेगें भविष्य में वैसा बन सकते हैं। अगर उचित परिश्रम किया जो तो। दुखद बात यह है कि निषाद समाज में किशोरों के प्रति उचित ध्यान नहीं दिया जाता है। वे अपने परिवार समाज से नैतिक शिक्षा, प्रोत्साहन, सुविचार इत्यादि के बदले कलहपूर्ण पारिवारिक माहौल, दुर्व्यसनों के शिकार अभिभावक, अनेक प्रकार के अंधविश्वास और कुरीतियाँ से ग्रसित समाज पाता है। उनका मन कुंठित हो जाता है फलतः वे भी आगे चलकर एसे राहों पर चलने के लिए विवश हो जाता है। इस प्रकार पीढ़ी दर पीढ़ी विगड़ती चली जाती है।
अतः अपने समाज के किशोर भाई-बहनों से मेरा आत्मीय अनुरोध है कि वे स्वयं को, अपने परिवार को, अपने समाज को, सुसभ्य, सुसंस्कृत, सदाचारी शिक्षित बनाने का पहल करें। अच्छे संस्कार, व्यवहार, विचार, एवं आदर्शों को अपनावें। अच्छी पत्र-पत्रिकाऐं एवं साहित्य का अध्ययन करें। महापुरूशों की जीवनी पढ़ें। उस पर चिंतन मनन करें। दूसरे विकसित समाज के सदगुणों का अनुसरण करें। दुर्व्यसनों से दूर रहें। आप पारिवारिक, सामाजिक कार्यों में दखल देने योग्य हो गयें हैं। अतः अपने परिवार के सदस्यों को भी अपना सुझाव दें सकते हैं। उन्हें मद्यपान, धूम्रपान जुआ और अन्य समाजिक कुरीतियों के दुश्परिणामों के बारे में बताकर इनकों त्यागने के लिए दबाव दे सकते हैं। मैंने कई गाँवों में देखा है कि वहाँ के किशोरों ने संगठित होकर अपने अभिभावकों को मद्यपान और जुआ छोड़ने को बाध्य किया। आज वे परिवार उन्नति के शिखर पर है। आप भी हमउम्रों के साथ मिलकर कुमार्गी अभिभावकों एवं समाज के अन्य सदस्यों के विरूद्ध आवाज उठाकर अपने परिवार और समाज को सुखी सम्पन्न बना सकते हैं। आये अपना पुनीत कर्त्तव्य का पालन कंधा से कंधा मिलाकर करें।
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