मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Tuesday, December 29, 2015

युवाशक्ति: महाशक्ति


राष्ट्र की वास्तविक शक्ति युवाशक्ति ही होती है। युवाशक्ति वह शक्ति है जो चाहे तो सदियों से परतंत्र किसी राष्ट्र को क्षणभर में स्वतंत्र करा सकती है। किसी परिवार, समाज या राष्ट्र में व्याप्त दरिद्रता, अषिक्षा, अंधविष्वास, अंधभक्ति या अन्य प्रकार की कुरीतियों को प्रलयकारी चक्रवात की भांति समूल नश्ट कर सकता है। यदि युवा षक्ति सो जाये तो कोई विकसित राष्ट्र भी कुछ दिनों में कंगाल हो जायेगा। युवा अगर अपने लक्ष्य प्राप्त करने की प्रण कर लें तो वह हिमालय से निकली जलधारा की भाँति पर्वत, पेड़, उबर-खाबड़, समतल की परवाह किये बगैर आगे बढ़ते जायेगें। किसी समाज, परिवार या राश्ट्र का विकास मुख्यतः युवाओं पर ही निर्भर करता है। जरा सोचिये अगर युवाओं में स्वाभिमान न जाग्रत होता तो वे अपनी बलिदानी नहीं देते तो हमारा देष स्वतंत्र हो पाता। आज भी अनेक संस्थाए, समाज, राजनैतिक दल युवाओं में ही पैठ बनाकर युवा आन्दोलन करवाते हैं और अपने लक्ष्य तक पहुँचते हैं। जे0 पी0 आन्दोलन इसका एक प्रमुख उदाहरण है। युवाषक्ति के महत्ता के बारे में एक जगह भगवान राजनीष लिखे हैं- भारत में आजकल बूढ़े ही जन्म ले रहे हैं। अगर जन्म ही बूढ़े लेंगे तो वे कभी युवा कैसे हो सकते हैं? अगर जन्म षिषु लेते तो कभी न कभी वे युवा होते। युवा कभी भी अपने साथ या अपने सामने अन्याय होते नहीं देख सकता है। भारत में आजकल चारों ओर भ्रश्टाचार, अन्याय, अनीति सबके आँखों के सामने हो रहा है। कोई इसके खिलाफ आवाज नहीं उठा रहा है। कारण सबका खून ठंढ़ा है। युवाओं का खून गर्म होता है, बच्चे और बूढ़े का खून ठंढ़ा होता है।


सदियों से षोशित, उपेक्षित, गरीबी, अषिक्षा, अंधविष्वास, अंधभक्ति कई प्रकार के सामाजिक कुरीतियाँ से ग्रसित निशाद समाज की स्थिति आज बेहद दयनीय एवं लज्जाजनक है। हमारे समाज के अधिकांष युवावर्ग अनेक प्रकार के दुव्र्यसनों के षिकार हैं। वे कुमार्ग पर ही चल रहे हैं। उन्हें न अपनी अतीत की सुध है न भविश्य की चिंता है। मद्यपान और जुआ को वे अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझते हैं। ऐसा लगता है वे इसके बिना जी ही नहीं सकते हैं। अपनी आय के अधिकांष हिस्सा व इन्हीं पर व्यय कर देते हैं। माँ-बहन बच्चें क्या कर रहे हैं? उन्हें जरा भी फिक्र नही होती है। फलतः परिवार की स्थिति काफी दयनीय हो जाती है। परिवार के बच्चों का लालन-पालन सही तरीके से नहीं होता है। उन्हें उचित षिक्षा नहीं मिल पाती है। जिससे उनका भविश्य बरबाद हो जाता है।


अतः निषाद समाज के युवाओं का उत्तरदायित्व है कि अगर वे किसी भी प्रकार के दुव्र्यसनों के षिकार है तो पहले वे स्वयं इससे मुक्त हों फिर अपने परिवार समाज के अन्य सदस्यों की मुक्त कराये। समाज में व्याप्त अंधविष्वास, अंधभक्ति कुरीतियों के विरूद्ध लोगों को जाग्रत करे। समाज से इन सब अवरोधक तत्वों को समूल नश्ट करने का अभियान चलाये। अपने समाज में षिक्षा का अभाव है। अतः युवा साक्षर मित्र चाहे तो थोड़ा वक्त निकालकर अपने अड़ोस पड़ोस के अषिक्षितों को कम से कम साक्षर तो बना ही सकते हैं। इससे उनका व्यर्थ समय का सदुपयोग भी हो जायेगा। इसी तरह सरकार द्वारा चलाये जा रहे कल्याणकारी योजनाओं जैसे परिवार नियोजन, साक्षरता अभियान, पोलियो उन्मूलन में सहयोग कर इससे समाज के अधिकांष सदस्यों को लाभान्वित कर सकते हैं। 

संजय कुमार निषाद

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