मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Tuesday, December 29, 2015

आत्मनिर्भर बनें। भाग्य भरोसे मत बैठें।


कुछ लोगों का कथन है -सारा संसार का संचालन सर्वषक्तिमान ईष्वर के द्वारा होता है। वे ही हमारे कर्मों (भाग्य) के निर्माता हैं। अतः जो वे चाहेंगे वही होगा। समस्त प्राणी उनके इच्छानुसार कार्य करते हैं। मनुश्य चाहे कितना भी कर्म या परिश्रम क्यों न करे। उन्हें प्राप्त उतना ही होगा जितना उनके भाग्य में लिखा होगा। ऐसे व्यक्ति अपना भूत-भविश्य और वर्तमान उत्थान-पतन के बारे में सोचते ही नहीं हैं। वे भाग्यवादी बनकर किसी ईष्वरीय चमत्कार के आषा में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं, जो उनके अवनति का कारण बन जाता है। यह अंधविष्वास सदियों से षोशित, उपेक्षित निशाद समाज में उसी प्रकार से व्याप्त है जिस प्रकार दूध में पानी मिल जाता है। 

 

यह समाज कालांतर से ही भाग्यवाद के चंगुल में फँसा है। आज इस समाज की जो दुर्गति हो रही रही है, केवल भाग्यवाद के कारण। कुछ लोग तर्क देते हैं- भाग्य यदि साथ नहीं दे तो धन के लिए बहुत दौड़ धूप करना व्यर्थ है। भाग्य के बिना केवल दौड़ धूप से अगर लक्ष्मी की प्राप्ति होती तो बराबर दौड़ते रहने बाला कुत्ता भी धनी हो जाता, लेकिन सत्य बिल्कुल इसके विपरीत है- 

 उद्योगिनं पुरूश सिंहमुपैति लक्ष्मीदैवेन देयमिति कापुरूशा वदन्ति। 

 दैवं निहत्य कुरू पौरूशमात्मषक्त्यायत्ने कृते यदि न सिद्ध्यति कोत्र दोशः। (भर्तृहरि) 

अर्थात् उद्योगी मनुश्य लक्ष्मी का उपार्जन करता है, परन्तु कायर मनुश्य भाग्य के भरोसे बैठा रहता है। अतः भाग्य को ठोकर मारकर उद्योगी पुरूश अपने कार्य में दृढ़ता से निमग्न हो जाता है, यदि फिर भी उसे सफलता नहीं मिलती तो वह उसे भाग्य का दोश नहीं वरन अपनी कार्यपद्धति का दोश मानता है।


सच तो यह है कि जो व्यक्ति भाग्य के भरोसे बैठा रहता है, उसका भाग्य भी बैठा रहता है और जो हिम्मत बाँधकर कार्य करता है उसका भाग्य भी खड़ा हो जाता है। भाग्य बना-बनाया नहीं मिलता है, वरन् उसका निर्माता तो हम स्वयं हैं। जैसा डिजरायली ने कहा है- We make our fortunes and call them fate. हम अपना भविश्य स्वयं बनाते हैं और उसे भाग्य कहते हैं।


हमारा निशाद समाज भी भाग्यवाद जैसे दलदल में फँसा हुआ है। फलतः सदियो से इसका विकास मार्ग अवरूद्ध हो गया है। यह समाज बडा जोखिम उठाने से कतराते हैं। इसलिए अभी तक इसमें इसमें अनेक प्रकार की कुरीतियाँ, अंधविष्वास, अंधभक्ति विद्यमान है। अब समय आ गया है, भाग्य को भूलिये और उद्योगी बनिये। सफलता आपके कदमों को चूमेगी।

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