विश्व में अगर किसी चीज के उत्पादन में लगातार बृद्धि हो रही है तो वह है मानव का उत्पादन। प्रत्येक सेकेंड में विश्व में कहीं न कहीं तीन बच्चे पैदा होते हैं। इस प्रकार प्रत्येक सप्ताह बीस लाख से भी अधिक जनसंख्या बढ़ जाती है।
विश्व के कई विकसित देशों में जनसंख्या को नियंत्रित किया जा चुका है लेकिन विकासशील देशों के जनसंख्या में आश्चर्यजनक बृद्धि हो रही है। विकासशील देशों की सरकारें जन स्वास्थ्य पर तो ध्यान दे रही है, फलस्वरूप शिशु मृत्युदर कम हो रही है लेकिन जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई ठोस कार्यक्रम नहीं अपना रही है। इन देशों के जनसंख्या वृद्धिदर देखकर लगता है यहाँ सिर्फ शिशु उत्पादन उद्योग स्थापित है।
भारत एक विकासशील देश है। यहाँ की जनसंख्या के बारे में कोई अनभिज्ञ नहीं है। जनसंख्या में विश्व में इसका दूसरा स्थान है। सिर्फ चीन की जनसंख्या इससे अधिक है। चीन अब कठोर नियम बनाकर जनसंख्या को नियंत्रित कर लिया है। भारत की जनसंख्या का तीव्र रफ्तार से बढ़ना जारी है। सरकारी एवं स्वयंसेवी संगठनों के सारे प्रयास यहाँ विफल हो रहा है। परिवार नियोजन के कार्यक्रम को भी अन्य कार्यक्रमों के तरह पाला मार दिया है। परिवार नियोजन के कार्यक्रम के असफल होने का अन्य कारण है धार्मिक असमानता, समाज में व्याप्त अंधविश्वास, अशिक्षा, गरीबी, पुरूष—नारी में भेदभाव इत्यादि।
निषाद समाज भारत का एक प्राचीन समाज है। इसके बावजूद इस समाज की स्थिति काफी दयनीय है। इसका मूल कारण भी अनियंत्रित जनसंख्या ही है। समाज अशिक्षा, अंधविश्वास, अंधभक्ति अनेक प्रकार की सामाजिक कुरीतियों से ग्रसित है। जनसंख्या एवं अशिक्षा में चोली दामन का संबंध है।
अगर प्रकृति पर नजर डालें तो पायेगें कि निम्न श्रेणी के जीव—जंतुओं में उच्च श्रेणी के जीव—जंतुओं के अपेक्षा प्रजनन दर अधिक होता है। अनियंत्रित जनसंख्या के कारण ही बहुसंख्यक जीव —जंतुओं को अखाद्य एवं सड़े—गले पदार्थों से उदर की ज्वाला को शांत करना पड़ता है। सुअर, मुर्गा, कुत्ता इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। जरा सोचिये शेरनी भी अगर सौलह या बीस बच्चा जनती तो उसे और उसके उस जाति को भी सुअर के तरह मल खाना पड़ता या गाय की तरह घास चरना पड़ता।
विश्व के कोई भी धर्म में कृत्रिम गर्भ निरोधक के प्रयोग का विरोध के बावजूद भी सामर्थ्य से अधिक संताने उत्पन्न करने की इजाजत नहीं देता। भारत जैसे विशाल देश में अनियंत्रित जनसंख्या का मूल कारण धार्मिक कट्टरता एवं अशिक्षा गरीबी है। गरीब, अशिक्षित, अंधविश्वासी लोग संतान को ईश्वरीय कृपा समझते हैं। अब सबको मालूम होना चाहिए कि संतान ईश्वरीय कृपा से नहीं बल्कि पति—पत्नी के संयुग्मन के फलस्वरूप होता है। अगर दंपति चाहे तो प्राकृत्रिक या कृत्रित निरोधकों को अपनाकर जनसंख्या को नियंत्रित कर सकते हैं। विश्व के इतिहास के पन्नों को उलटायें तो आप पायेगें कि अनेक अल्पसंख्यक लेकिन सबल जातियों ही बहुसंख्यक जातियों पर हमेशा शासन किये हैं। यहाँ तक कि अनेक बहुसंख्यक जातियाँ तो अनियंत्रित जनसंख्या के कारण अपना अस्तित्व खो चुकी है। आज भी विश्व में अनेक देशें में लोकतंत्रात्मक शासन में भी अल्पसंख्यक समाज/जातियों से ही शासक बनते हैं, क्योंकि बहुसंख्यक समाज हमेशा आर्थिक एवं सामाजिक समस्या से ही जूझते रहते हैं। उन्हें अपने घर के बाहर के समस्याओं पर सोचने का अवसर ही नहीं मिलता है। अधिक संतान उत्पन्न करने कसे प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्षत: अनेक हानियाँ होती है। दयनीय आर्थिक स्थिति के कारण अधिक संतान उत्पन्न करने पर दंपति शारीरिक और मानसिक रूप से तो अस्वस्थ होते ही हैं, साथ ही बच्चों का उचित लालन—पालन और शिक्षा—दीक्षा नहीं हो पाता है। अत अधिक संतान उत्पन्न करना दुख का कारण ही नहीं मानवीय अपराध भी है। जिसके दंडस्वरूप संतानसहित उसके माता पिता को उम्रभर नरक समान जिंदगी गुजारना पड़ता है।
अत: निषाद समाज के सभी समाजसेवियों, शिक्षित भाई—बहनों से मेरा आत्मीय अनुरोध है कि समाज को उन्नति के शिखर पर पहुँचाने हेतु सबसे पहले जनसंख्या नियंत्रित करने का आन्दोलन चलायें, घर—घर परिवार नियोजन अपनाने के लिए लोगों को समझावे, प्रोत्साहित करे एवं इसका लाभें को बतावें। सरकारी एवं स्वयंसेवी संगठनों द्वारा चलाये जा हे परिवार नियोजन के कार्यक्रम में सहयोग कर अपने समाज के अधिक से अधिक सदस्यों को लाभान्वित करवायें। ध्यान दे युवाओं के अपेक्षित सहयोग से ही समाज का कल्याण हो सकता है।
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