मंजिल तो पाना है।

शिखर पर जाना है।

चाहे कुछ भी हो जाये,

खुद से किये वादा निभाना है।

संजय कुमार निषाद


Sunday, January 1, 2017

मुफ्तजीवि भव:।

सदियों से मॉं—बाप एवं बुजुर्ग अपने बच्चों को विजयी भव:, यशश्वी भव:, खुब फलों—फूलों इत्यादि आशाीर्वाद देते रहे हैं।  अब उन्हें लग रहा है कि शायद यह आशीर्वाद अब उचित एवं सामयिक नहीं हैं।  प्राचीन हो चुका है।  समय संगत भी नहीं है।  आशीर्वाद पर फिर से विचार करना तर्मसंगत भी है।  मुझे लगता है कि वह दिन दूर नहीं जब माता—पिता एवं बुजुर्ग अपने बच्चों को मुफ्तजीवि भव: का आशीर्वाद देगें।  यह ​उचित, तकसंगत, लाभदायक एवं अपडेटेड भी है।  आज भारत के भाग्य विधातों के पास यही तो एक असरदार हथियार है, जिसके सहारे वे अपनी नैया को अनेक प्रकार के झंझावतों के बावजूद पर लगा लेते हैं।  ग्राम प्रधानी से लेकर प्रधानमंत्री तक का सपना इस मुफ्त नामक एटम बम को गिराकर पूरा कर सकते हैं।  गरीबों को मुफ्त अनाज पानी,बिजली, पक्का मकान, मोबाईल, रंगीन टेलीविजन, फ्रिज, लेपटॉप, साईकिल, मोटरसा​ईकिल इत्यादि देने के वायदे एवं उसपर समल कर तो सत्ता की उॅंची से उॅंची सीढ़ी तो पार कर ही चुके हैं। अब बचा क्या है, मुफ्त में देने को इस पर सोचना बॉंकी है। 

सत्ताधीशों एवं सत्ता के आस लगाये भाग्यविधाताओं के चिंतन शिविर में इस मसले का हल निकाला जा रहा है। गरीबों को भी अपने चौपहिया गाड़ी से चलने का मन तो करता ही होगा।  आखिर आधे दर्जन से लेकर दर्जन भर बच्चों को दुपहिया मड़ियल साईकिल पर कहॉं फिट कर पायेंगे।  तो कम से कम चौपहिया वाहन तो चाहिए ही। साथ ही आकाश में गरजते हुए हवाई जहाज को देखकर गरीबों का भी मन विचलित होता है।  आखिर इस देश पर उनका भी तो बराबर का हक ।  क्यों ने प्रत्येक गरीब परिवार को मुफ्त में एक चौपहिया वाहन का इंतजाम सरकार के तरफ से किया जाय।  साल में एक बार देश के किसी हिस्से का मुफ्त में हवाई सैर और दो साल में एक बार अगर संभव नहीं हो तो कम से कम चुनाव के पहले यानि हर पॉंचवे साल गरीब परिवार को विदेश यात्रा मुफ्त में हवाई जहाज से करवाया जाए।  तब जाके सबको समान अधिकार मिलेगा।  जरा सोचिये यदि चुनावी घोषणाओं मे मुफ्त् मिलने वाली सुविधाओं में ये दोनों चीजें जुट जायेगी तो देश का कितना भला होगा।  और इन भाग्यविधातों के जेब से क्या जायेगा।  आखिर टैक्स इसीलिए तो लिया जाता है।  इस तरह से देश खुशहाल भी नजर आएगा।  तो क्यों न लोग अपने बच्चों से कहेंगे बेटा कुछ मत कर बस मुफ्तखोर बन जा।  तेरा कल्याण हो जायेगा।

देश का विकास शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास सिर्फ और सिर्फ जनसंख्या पर टिकी होती है।  भीड़ और भेड़ को बस एक अगुआई करने वाले की तलाश रहती है।  अनियंत्रित जनसंख्या के कारण आज चारों तरफ सिर्फ भीड़ ही भीड़ है।  संसाधन को एक सीमा तक ही बढ़ा सकते हैं तो क्यों न उपभोक्ता को ही सीमित किया जाए।  परिवार नियोजन के कार्यक्रम अब न तो किसी राजनेता के कार्यसूचि में होता है न ही वायदा सूचि में तो कब तक और कहॉं तक लोगों को मुफ्त की रेबरियॉं बॉंटते रहेंगे?  आम जनता को समझना होगा।  एक तरफ मेहनतकश शिक्षित समुदाय का काम के बोझ और अनेक प्रकार के चिंता, निराशा के कारण प्रजनन क्षमता कम होता जा रहा है ।  शादी की औरसत आयु बढ़ता जा रहा है तो दूसरी तरफ अशिक्षितों की संख्या लगातार बढ़ता जा रहा है।  बाल विवाह धड़ल्ले से हो रहा है।  आम आदमी मुफ्त में बिजली पानी के लिए पैदा नहीं हुआ है। उसे बेहतर सुविधा चाहिए।  मेहनत करने के लिए सभी तैयार हैं लेकिन उसे मौका देना होगा।  भाग्य बिधाताओं से विनम्र निवेदन है कि लोगों को मुफ्तखोर मत बनाइए बल्कि उनके लिए बेहतर अवसर प्रदान करने का उपाय किजिये।  हम भारीतीय शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत तो हैं ही साथ में मेहनती भी किसी से कम नहीं हैं।  आप हमें सपना मत दिखाईये बल्कि हमारे अपने सपनों को साकार करने में हमारी मदद किजिये।