मंजिल तो पाना है।
शिखर पर जाना है।
चाहे कुछ भी हो जाये,
खुद से किये वादा निभाना है।
संजय कुमार निषाद
Wednesday, October 31, 2007
Monday, October 8, 2007
प्रतिभा बनाम प्रतिभा
भारत का प्रथम नागरिक कैसा हो? अगर संबैधानिक उपबन्धों को छोड़ दें तो प्रत्येक भारतीय की हार्दिक इच्छा होती है कि भारत का राष्ट्रपति बहुमुखी प्रतिभा के धनी हो, जिनके पास भारत को एक सबल, समर्थ राष्ट्र बनाने की सोच हो एवं राजनीति पृष्ठभूमि का नहीं हो। यह सच भी है कि आज तक जितने लोग राष्ट्रपति पद को शुसोभित किये हैं, वे अपने-अपने क्षेत्र के महान हस्ती रहे हैं और संभवतः पद की गरिमा को बनाये रखने में कोई कसर नहीं छोड़े। भूतपूर्व राष्ट्रपति माननीय डा0 अबुल कलाम आजाद इस पद को जिस ऊँचाई पर ले गये वह वर्तमान राष्टपति एवं भावी राष्ट्रपति के लिए अनुकरणीय होगा। उनके कार्यकाल के पूर्व यह माना जाता था कि भारत का राष्ट्रपति ब्रिटेन की साम्राज्ञी की तरह राजा होता है, जिसे आम नागरिक या आम जींदगी से बहुत कम ही सामना करना होता है। डॉ0 कलाम ने इस पद पर रहते हुए जिस प्रकार से बच्चों, किसानों और समाज के हर वर्ग के लोगों के लिए सुलभ बना दिये, प्रशंसनीय और भारत में उच्च पदों पर आसीन राजनेता और नौकरशाह के लिए एक सबक भी है, एक मिसाईलमैन राजा जो बच्चों के अभिभावक एवं पथ-प्रदर्शक थे। जिन्होनें अपने कृत से राष्ट्र को सबल बनाया और व्यक्तित्व से सबके चहेते बना। मिलनसार, भावुक एवं सब धर्मों के गूढ़ रहस्यों की व्याख्या करने वाले वैज्ञानिक। जिनकी प्रतिभा की प्रशंसा करना भी उनके जैसा प्रतिभाशाली लोगों के वश की बात है, मुझ जैसे लोगों के लिए यह कार्य अत्यन्त कठिन है।
सबाल यह है कि सिर्फ राजनीतिक अहं के लिए या स्पष्ट कहें, तो राजनीतिक फायदे के इस पद का दुरुपयोग किया जाना चाहिए? अगर संविधान निर्माताओं ने इस पद को सीधे जनता के हाथ में न देकर अप्रत्यक्ष रुप से जनता को दिया, को क्या जन प्रतिनिधियों को जनता की भावनाओं का ख्याल नहीं करना चाहिए? एक व्यक्ति जिसे सारा देश समर्थन दे रहा है, को क्या सर्वसम्मति से इस पद पर आसीन नहीं करना चाहिए? क्या केवल इस एक पद को राजनीति का अखाड़ा बनाये बिना नहीं रख सकते हैं ? अंतःभावना से तो सब सहमत होंगे लेकिन, इस पद के पीछे छिपे निहित स्वार्थ के लिए सब एकजुट नहीं होते हैं, बहुमत दिखाते हैं।
वर्तमान समय में भारत का राष्ट्रपति ऐसे लोगों को बनाना चाहिए जिनके पास नई सोच हो न कि घिसी-पिटी राजनैतिक विचारधारा, जिसमें आश्वासन, बयान फिर खंडन के सिवाय कुछ भी नहीं होता।
सत्तादल एक प्रतिभा को हटाकर दूसरी प्रतिभा को भारत के राष्ट्रपति के पद पर शुसोभित करने में सफल हो गई। जहाँ एक के पास काम करने की प्रतिभा थी, दूसरी की नाम ही प्रतिभा है। काम और नाम में कितनी समानता है ये किसी से छिपा नहीं है। महिला सशक्तिकरण के नाम पर जिस प्रकार एक विवादस्पद महिला को भारत का प्रथम नागरिक बनाया गया यह सम्मान का नहीं बल्कि चिंता का विषय हो सकता है।
भारत की महिला महामहिम प्रतिभा पाटिल जी से सशक्त होगी या किरण बेदी से यह बात संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्षा माननीय सोनिया गाँधी जी को भी अच्छी तरह पता है, लेकिन स्वार्थवश इंसान क्या नहीं करता और गँवाता। महाभारत में धृतराष्ट्र पुत्र मोह के कारण ही सत्ता समेत अपने सौ पुत्रों को गँवाये थे। इतने बड़े देश में सत्ता दल को एक ऐसा उम्मीदवार नहीं मिला जो दागदार नहीं हो।
इसबार राष्ट्रपति चुनाव में एक छोटी सी घटनाक्रम और हुआ, विपक्षी गठबंधन के एक महत्त्वपूर्ण घटक दल द्वारा क्षेत्रीयता के आधार पर मतदान करना। उस पार्टी और संबंधित क्षेत्र के लिए भले ही यह गौरव की बात हो सकती है, लेकिन देश और समाज के लिए यह शुभ संकेत नहीं हो सकती। इस तरह की नीच सोच से देश की एकता, अखंडता एवं धर्मनिरपेक्षता पर खतरा उत्पन्न हो सकती है।
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